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साक़ी अमरोहवी

1925 - 2005 | कराची, पाकिस्तान

पाकिस्तान से तअल्लुक़ रखने वाले मारूफ़ शायर

पाकिस्तान से तअल्लुक़ रखने वाले मारूफ़ शायर

साक़ी अमरोहवी

ग़ज़ल 7

अशआर 8

तू नहीं तो तिरा ख़याल सही

कोई तो हम-ख़याल है मेरा

दर-ब-दर होने से पहले कभी सोचा भी था

घर मुझे रास आया तो किधर जाऊँगा

मदरसा मेरा मेरी ज़ात में है

ख़ुद मोअल्लिम हूँ ख़ुद किताब हूँ मैं

ज़िंदगी भर मुझे इस बात की हसरत ही रही

दिन गुज़ारूँ तो कोई रात सुहानी आए

मुझ को क्या क्या दुख मिले 'साक़ी'

मेरे अपनों की मेहरबानी से

पुस्तकें 1

 

वीडियो 7

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

साक़ी अमरोहवी

साक़ी अमरोहवी

साक़ी अमरोहवी

साक़ी अमरोहवी

साक़ी अमरोहवी

साक़ी अमरोहवी

साक़ी अमरोहवी

साक़ी अमरोहवी

साक़ी अमरोहवी

साक़ी अमरोहवी

साक़ी अमरोहवी

साक़ी अमरोहवी

साक़ी अमरोहवी

साक़ी अमरोहवी

साक़ी अमरोहवी

जो दुनिया की तबाही चाहते हैं

साक़ी अमरोहवी

कौन पुर्सान-ए-हाल है मेरा

साक़ी अमरोहवी

ख़ुदा ने क्यूँ दिल-ए-दर्द-आश्ना दिया है मुझे

साक़ी अमरोहवी

ज़िंदगी भर मैं सरगिरानी से

साक़ी अमरोहवी

मंज़िलें लाख कठिन आएँ गुज़र जाऊँगा

साक़ी अमरोहवी

शरह-ए-ग़म हाए बे-हिसाब हूँ मैं

साक़ी अमरोहवी

सामने जब कोई भरपूर जवानी आए

साक़ी अमरोहवी

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