जौन एलिया
जनाब जौन एलिया हमारे अह्द के बड़े ख़ुश-गो और ख़ुश-फ़िक्र शायर हैं। उनके यहाँ जज़्बाती वुफ़ूर के साथ-साथ गहरे शऊर की जो परछाईयाँ मिलती हैं उनकी वजह से जनाब जौन एलिया की शायरी बड़ी क़ाबिल-ए-क़द्र और अहम हो गई है। वो तारीख़ और फ़लसफ़े के बड़े ज़ीरक तालिब-इल्म हैं, उलूम पर गहरी नज़र रखते हैं। ज़िंदगी और मुआशरे के बारे में उनका रद्द-ए-अमल बड़ा हक़ीक़त-पसंदाना और मुसबत है। अगरचे फु़नून-ए-लतीफ़ा में विरासत का कोई तसव्वुर नहीं, ताहम हमारी शायरी में इस कुल्लीये के जो इस्तिस्ना नज़र आते हैं। उनमें जनाब जौन एलिया भी शामिल हैं। शायरी और अदब उन्हें विरसे में मिले हैं बल्कि ये कहना बजा है कि उन्होंने अदब-ओ-शेअर की आग़ोश में आँखें खोली हैं और अदब-ओ-शेअर की गोद में परवरिश पाई है लेकिन जो कुछ उन्होंने बुज़ुर्गों से हासिल किया उसे अपनी इन्फ़िरादियत की छाप और अपने ज़ाती रंग-ओ-आहंग से बहुत ज़्यादा पुर-कशिश और असर-अंगेज़ बना दिया है।
जनाब जौन एलिया ग़ज़ल और नज़्म दोनों पर यकसाँ दस्तरस रखते हैं। उनकी ग़ज़लों में रिंदाना सर-ख़ुशी, ताज़गी और नुदरत-ए-ख़्याल है। नज़्में गहरी फ़िक्र की हामिल और पुर-असर हैं। उनके कलाम की जिस ख़ुसूसीयत ने मुझे सबसे ज़्यादा मुतास्सिर किया वो रिंदाना जोश-ओ-ख़रोश की तैह से उभरने वाली फ़िक्र है जो क़ारी के दिल-ओ-दिमाग़ दोनों को झिंझोड़ देती है।
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.