फ़िक्शन की मा'नविय्यत का बड़ा हिस्सा तो उन रिश्तों में होता है जो मुसन्निफ़ को अश्या के दरमियान नज़र आते हैं।
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कहानी कभी हासिल होती है, कभी हासिल की जाती है, कभी सड़क पर पड़े हुए हीरे की तरह मिल जाती है।
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मैंने इतनी कहानियाँ सुनी हैं कि अपना आप भी कहानी लगता है।
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अदब में नुक़्ता-ए-नज़र का मस्अला मेरे लिए दीन की सी हैसियत रखता है।
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उर्दू अफ़साने में कार-कर्दगी का मे'यार मंटो, इस्मत, बेदी, कृष्ण रहे हैं। उर्दू अफ़साने के चार इक्के... इन चार बड़ों की बरतरी मुसल्लम। मैंने अपनी कहानी को उनके साँचे में नहीं ढाला कि मैं तुरुप का पत्ता हूँ, जिसके रंग पर चाल आ जाए तो क्या बेगी क्या बादशाह ।