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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Imam Azam's Photo'

इमाम आज़म

1960 - 2023 | कोलकाता, भारत

शायर, आलोचक, पत्रकार और साहित्यिक पत्रिका "तमसील-ए-नौ" के ऑनरेरी संपादक

शायर, आलोचक, पत्रकार और साहित्यिक पत्रिका "तमसील-ए-नौ" के ऑनरेरी संपादक

इमाम आज़म के शेर

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तेरी ख़ुशबू से मोअत्तर है ज़माना सारा

कैसे मुमकिन है वो ख़ुशबू भी गुलाबों में मिले

आस्था का रंग जाए अगर माहौल में

एक राखी ज़िंदगी का रुख़ बदल सकती है आज

दुनिया की इक रीत पुरानी, मिलना और बिछड़ना है

एक ज़माना बीत गया है तुम कब मिलने आओगे

किसी की बात कोई बद-गुमाँ समझेगा

ज़मीं का दर्द कभी आसमाँ समझेगा

गेसू रुख़्सार की बातें करें

आओ मिल कर प्यार की बातें करें

हर तरफ़ इक जंग का माहौल है 'आज़म' यहाँ

आदमी अब घर के भी अंदर सलामत है कहाँ

उन के रुख़्सत का वो लम्हा मुझे यूँ लगता है

वक़्त नाराज़ हुआ दिन भी ढला हो जैसे

जो मज़े आज तिरे ग़म के अज़ाबों में मिले

ऐसी लज़्ज़त कहाँ साक़ी की शराबों में मिले

मौसम सूखा सूखा सा था लेकिन ये क्या बात हुई

केवल उस के कमरे में ही रात गए बरसात हुई

संकट के दिन थे तो साए भी मुझ से कतराते थे

सुख के दिन आए तो देखो दुनिया मेरे साथ हुई

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