जलील ’आली’
ग़ज़ल 43
अशआर 20
दिल आबाद कहाँ रह पाए उस की याद भुला देने से
कमरा वीराँ हो जाता है इक तस्वीर हटा देने से
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रास्ता सोचते रहने से किधर बनता है
सर में सौदा हो तो दीवार में दर बनता है
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दिल पे कुछ और गुज़रती है मगर क्या कीजे
लफ़्ज़ कुछ और ही इज़हार किए जाते हैं
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दुनिया तो है दुनिया कि वो दुश्मन है सदा की
सौ बार तिरे इश्क़ में हम ख़ुद से लड़े हैं
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चित्र शायरी 3
वीडियो 3
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