जलील ’आली’
ग़ज़ल 43
अशआर 20
ग़ुरूर-ए-इश्क़ में इक इंकिसार-ए-फ़क़्र भी है
ख़मीदा-सर हैं वफ़ा को अलम बनाते हुए
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ज़रा सी बात पर सैद-ए-ग़ुबार-ए-यास होना
हमें बर्बाद कर देगा बहुत हस्सास होना
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दुनिया तो है दुनिया कि वो दुश्मन है सदा की
सौ बार तिरे इश्क़ में हम ख़ुद से लड़े हैं
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दिल पे कुछ और गुज़रती है मगर क्या कीजे
लफ़्ज़ कुछ और ही इज़हार किए जाते हैं
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चित्र शायरी 3
वीडियो 3
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