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जोश मलीहाबादी

1898 - 1982 | इस्लामाबाद, पाकिस्तान

सबसे गर्म मिज़ाज प्रगतिशील शायर जिन्हें शायर-ए-इंकि़लाब (क्रांति-कवि) कहा जाता है

सबसे गर्म मिज़ाज प्रगतिशील शायर जिन्हें शायर-ए-इंकि़लाब (क्रांति-कवि) कहा जाता है

जोश मलीहाबादी

ग़ज़ल 47

नज़्म 31

अशआर 46

अब ख़ुदा इनायत-ए-बेजा से फ़ाएदा

मानूस हो चुके हैं ग़म-ए-जावेदाँ से हम

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इक इक ज़ुल्मत से जब वाबस्ता रहना है तो 'जोश'

ज़िंदगी पर साया-ए-ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ क्यूँ हो

मिले जो वक़्त तो रह-रव-ए-रह-ए-इक्सीर

हक़ीर ख़ाक से भी साज़-बाज़ करता जा

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वहाँ से है मिरी हिम्मत की इब्तिदा वल्लाह

जो इंतिहा है तिरे सब्र आज़माने की

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सुबूत है ये मोहब्बत की सादा-लौही का

जब उस ने वादा किया हम ने ए'तिबार किया

मर्सिया 2

 

क़ितआ 2

 

रुबाई 35

क़िस्सा 18

पुस्तकें 351

चित्र शायरी 10

 

वीडियो 51

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

जोश मलीहाबादी

जोश मलीहाबादी

जोश मलीहाबादी

जोश मलीहाबादी

जोश मलीहाबादी

जोश मलीहाबादी

जोश मलीहाबादी

जोश मलीहाबादी

जोश मलीहाबादी

जोश मलीहाबादी

जोश मलीहाबादी

जोश मलीहाबादी

जोश मलीहाबादी

जोश मलीहाबादी

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जोश मलीहाबादी

जोश मलीहाबादी

Bol ek tare jhan jhan jhan jhan

जोश मलीहाबादी

Josh Malihabadi Marsia Rubaai

जोश मलीहाबादी

Josh reading a Marsiya

जोश मलीहाबादी

Marsiya - Mojid O Mufakkir

जोश मलीहाबादी

Rubayi reading by Josh

जोश मलीहाबादी

Shayaron ka manshoor (nazm)

जोश मलीहाबादी

Takhleeqe Bengal

जोश मलीहाबादी

क्या गुल-बदनी है

किस दर्जा फ़ुसूँ-कार वो अल्लाह ग़नी है जोश मलीहाबादी

ग़ुंचे तेरी ज़िंदगी पे दिल हिलता है

जोश मलीहाबादी

अज़मत-ए-इंसान

जोश मलीहाबादी

अपनी मल्का-ए-सुख़न से

ऐ शम-ए-'जोश' ओ मशअ'ल-ए-ऐवान-ए-आरज़ू जोश मलीहाबादी

क्या गुल-बदनी है

किस दर्जा फ़ुसूँ-कार वो अल्लाह ग़नी है जोश मलीहाबादी

रिश्वत

लोग हम से रोज़ कहते हैं ये आदत छोड़िए जोश मलीहाबादी

ऑडियो 8

क़दम इंसाँ का राह-ए-दहर में थर्रा ही जाता है

गुदाज़-ए-दिल से बातिन का तजल्ली-ज़ार हो जाना

ज़ालिम ये ख़मोशी बेजा है इक़रार नहीं इंकार तो हो

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