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ब्लॉग1
दोहा7
किश्वर नाहीद के दोहे
सूत के कच्चे धागे जैसे रिश्ते पर इतराऊँ
साजन हाथ भी छू लें तो मैं फूल गुलाब बन जाऊँ
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मैं बहरी थी कागा बोला सुन न सकी संदेश
दिल कहता है कल आएँगे पिया बदल के भेस
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तकिया भीगा साँस भी डूबी मुरझाई हर आस
दिल को राह पे लाने की हर आस बनी संयास
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ठंडी रात और ठंडा बिस्तर सखी-री काँटे आए
लोग कहें जो दुख साँझे हों दिल हल्का हो जाए
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तपते लम्हे दहकते चेहरे सब कुछ ध्यान में लाऊँ
पत्ती पत्ती चाहे तोड़ूँ दिल का बोझ हटाऊँ
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प्रेम किया और साथ न छोटा कैसे थे वो लोग
हम ने प्यारों का अब तक देखा न संजोग
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आँख की पुतली सब कुछ देखे देखे न अपनी ज़ात
उजला धागा मैला होवे लगें जो मैले हात
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