मज़हर इमाम के शेर
दोस्तों से मुलाक़ात की शाम है
ये सज़ा काट कर अपने घर जाऊँगा
आप को मेरे तआरुफ़ की ज़रूरत क्या है
मैं वही हूँ कि जिसे आप ने चाहा था कभी
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अस्र-ए-नौ मुझ को निगाहों मैं छुपा कर रख ले
एक मिटती हुई तहज़ीब का सरमाया हूँ
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अब तो कुछ भी याद नहीं है
हम ने तुम को चाहा होगा
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टैग : उदासी
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एक मैं ने ही उगाए नहीं ख़्वाबों के गुलाब
तू भी इस जुर्म में शामिल है मिरा साथ न छोड़
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उस घर की बदौलत मिरे शेरों को है शोहरत
वो घर कि जो इस शहर में बदनाम बहुत है
सफ़र में अचानक सभी रुक गए
अजब मोड़ अपनी कहानी में था
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हैं चनारों के चेहरे भी झुलसे हुए
ज़ख़्म सब का हरा है तिरे शहर में
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अक्सर ऐसा भी मोहब्बत में हुआ करता है
कि समझ-बूझ के खा जाता है धोका कोई
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टैग : धोखा
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मोहब्बत आप ही मंज़िल है अपनी
न जाने हुस्न क्यूँ इतरा रहा है
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टैग : मंज़िल
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अब किसी राह पे जलते नहीं चाहत के चराग़
तू मिरी आख़िरी मंज़िल है मिरा साथ न छोड़
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जब हम तेरा नाम न लेंगे
वो भी एक ज़माना होगा
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चलो हम भी वफ़ा से बाज़ आए
मोहब्बत कोई मजबूरी नहीं है
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वो मेरा जब न हो सका तो फिर यही सज़ा रहे
किसी को प्यार जब करूँ वो छुप के देखता रहे
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हम ने तो दरीचों पे सजा रक्खे हैं पर्दे
बाहर है क़यामत का जो मंज़र तो हमें क्या
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हमें वो हमीं से जुदा कर गया
बड़ा ज़ुल्म इस मेहरबानी में था
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समेट लें मह ओ ख़ुर्शीद रौशनी अपनी
सलाहियत है ज़मीं में भी जगमगाने की
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अब उस को सोचते हैं और हँसते जाते हैं
कि तेरे ग़म से तअल्लुक़ रहा है कितनी देर
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निगाह ओ दिल के पास हो वो मेरा आश्ना रहे
हवस है या कि इश्क़ है ये कौन सोचता रहे
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एक दर्द-ए-जुदाई का ग़म क्या करें
किस मरज़ की दवा है तिरे शहर में
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न इतनी दूर जाइए कि लोग पूछने लगें
किसी को दिल की क्या ख़बर ये हाथ तो मिला रहे
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तू न होगा तो कहाँ जा के जलूँगा शब भर
तुझ से ही गर्मी-ए-महफ़िल है मिरा साथ न छोड़
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बस्तियों का उजड़ना बसना क्या
बे-झिजक क़त्ल-ए-आम करता जा
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तू है गर मुझ से ख़फ़ा ख़ुद से ख़फ़ा हूँ मैं भी
मुझ को पहचान कि तेरी ही अदा हूँ मैं भी
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किस सम्त जा रहा है ज़माना कहा न जाए
उकता गए हैं लोग फ़साना कहा न जाए
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कहा ये सब ने कि जो वार थे उसी पर थे
मगर ये क्या कि बदन चूर चूर मेरा था
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रात आँखों में हया ले के गुज़र जाती थी
लम्हा-ए-शौक़ बहुत चीं-ब-जबीं रहता था
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दिल से दूर हुए जाते हैं ग़ालिब के कलकत्ते वाले
गुवाहाटी में देखे हम ने ऐसे ऐसे चेहरे वाले
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टैग : शहर
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