परवीन फ़ना सय्यद के शेर
हर सम्त सुकूत बोलता है
ये कौन से जुर्म की सज़ा है
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मेरी आँखों में उतरने वाले
डूब जाना तिरी आदत तो नहीं
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खुल के रो लूँ तो ज़रा जी सँभले
मुस्कुराना ही मसर्रत तो नहीं
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तेरी पहचान के लाखों अंदाज़
सर झुकाना ही इबादत तो नहीं
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