Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

साबिर के शेर

732
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

चिलचिलाती-धूप थी लेकिन था साया हम-क़दम

साएबाँ की छाँव ने मुझ को अकेला कर दिया

तिरे तसव्वुर की धूप ओढ़े खड़ा हूँ छत पर

मिरे लिए सर्दियों का मौसम ज़रा अलग है

रखे रखे हो गए पुराने तमाम रिश्ते

कहाँ किसी अजनबी से रिश्ता नया बनाएँ

सारे मंज़र हसीन लगते हैं

दूरियाँ कम हों तो बेहतर है

मुझ से कल महफ़िल में उस ने मुस्कुरा कर बात की

वो मिरा हो ही नहीं सकता ये पक्का कर दिया

हम उस की ख़ातिर बचा पाएँगे उम्र अपनी

फ़ुज़ूल-ख़र्ची की हम को आदत सी हो गई है

ये कारोबार-ए-मोहब्बत है तुम समझोगे

हुआ है मुझ को बहुत फ़ाएदा ख़सारे में

सभी मुसाफ़िर चलें अगर एक रुख़ तो क्या है मज़ा सफ़र का

तुम अपने इम्काँ तलाश कर लो मुझे परिंदे पुकारते हैं

हँस हँस के उस से बातें किए जा रहे हो तुम

'साबिर' वो दिल में और ही कुछ सोचता हो

सैंत कर ईमान कुछ दिन और रखना है अभी

आज-कल बाज़ार में मंदी है सस्ता है अभी

फ़स्ल बोई भी हम ने काटी भी

अब कहना ज़मीन बंजर है

उस के शर से मैं सदा माँगता रहता हूँ पनाह

इसी दुनिया से मोहब्बत भी बला की है मुझे

यहाँ पे हँसना रवा है रोना है बे-हयाई

सुक़ूत-ए-शहर-ए-जुनूँ का मातम ज़रा अलग है

ये क्या बद-मज़ाक़ी है गर्द झाड़ते क्यूँ हो

इस मकान-ए-ख़स्ता में यार हम भी रहते हैं

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

Get Tickets
बोलिए