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Abu Mohammad Sahar's Photo'

अबु मोहम्मद सहर

1928 - 2002 | भोपाल, भारत

प्रसिद्ध आलोचक और शायर, साहित्यिक आलोचना व शोध से सम्बंधित कई महत्वपूर्ण पुस्तकें यादगार छोड़ीं

प्रसिद्ध आलोचक और शायर, साहित्यिक आलोचना व शोध से सम्बंधित कई महत्वपूर्ण पुस्तकें यादगार छोड़ीं

अबु मोहम्मद सहर के शेर

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तकमील-ए-आरज़ू से भी होता है ग़म कभी

ऐसी दुआ माँग जिसे बद-दुआ कहें

हिन्दू से पूछिए मुसलमाँ से पूछिए

इंसानियत का ग़म किसी इंसाँ से पूछिए

इश्क़ के मज़मूँ थे जिन में वो रिसाले क्या हुए

किताब-ए-ज़िंदगी तेरे हवाले क्या हुए

'सहर' अब होगा मेरा ज़िक्र भी रौशन-दिमाग़ों में

मोहब्बत नाम की इक रस्म-ए-बेजा छोड़ दी मैं ने

हमें तन्हाइयों में यूँ तो क्या क्या याद आता है

मगर सच पूछिए तो एक चेहरा याद आता है

होश-मंदी से जहाँ बात बनती हो 'सहर'

काम ऐसे में बहुत बे-ख़बरी आती है

मर्ज़ी ख़ुदा की क्या है कोई जानता नहीं

क्या चाहती है ख़ल्क़-ए-ख़ुदा हम से पूछिए

फिर खुले इब्तिदा-ए-इश्क़ के बाब

उस ने फिर मुस्कुरा के देख लिया

ग़म-ए-हबीब नहीं कुछ ग़म-ए-जहाँ से अलग

ये अहल-ए-दर्द ने क्या मसअले उठाए हैं

रह-ए-इश्क़-ओ-वफ़ा भी कूचा-ओ-बाज़ार हो जैसे

कभी जो हो नहीं पाता वो सौदा याद आता है

बर्क़ से खेलने तूफ़ान पे हँसने वाले

ऐसे डूबे तिरे ग़म में कि उभर भी सके

बला-ए-जाँ थी जो बज़्म-ए-तमाशा छोड़ दी मैं ने

ख़ुशा ज़िंदगी ख़्वाबों की दुनिया छोड़ दी मैं ने

इश्क़ को हुस्न के अतवार से क्या निस्बत है

वो हमें भूल गए हम तो उन्हें याद करें

बे-रब्ती-ए-हयात का मंज़र भी देख ले

थोड़ा सा अपनी ज़ात के बाहर भी देख ले

माना अपनी जान को वो भी दिल का रोग लगाएँगे

अहल-ए-जुनूँ ख़ुद क्या समझे हैं नासेह क्या समझाएँगे

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