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अफ़ज़ल परवेज़

शायर, पत्रकार और नाटककार, लोकमंच और लोकगीतों पर अपनी किताबों के लिए प्रसिद्ध

शायर, पत्रकार और नाटककार, लोकमंच और लोकगीतों पर अपनी किताबों के लिए प्रसिद्ध

अफ़ज़ल परवेज़

ग़ज़ल 8

नज़्म 1

 

अशआर 9

अलख जमाए धूनी रमाए ध्यान लगाए रहते हैं

प्यार हमारा मस्लक है हम प्रेम-गुरु के चेले हैं

अपना घर शहर-ए-ख़मोशाँ सा है

कौन आएगा यहाँ शाम ढले

तुम उन को सज़ा क्यूँ नहीं देते कि जिन्हों ने

मुजरिम का ज़मीर और सुकूँ लूट लिया है

हर मुसाफ़िर तिरे कूचे को चला

उस तरफ़ छाँव घनी हो जैसे

मैं तो अपनी जान पे खेल के प्यार की बाज़ी जीत गया

क़ातिल हार गए जो अब तक ख़ून के छींटे धोते हैं

दोहा 3

अँधियारी रातों के राही रैन है ऐसी घोर

शरण के कारन दस्तक दो तो बस्ती जाने चोर

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कीच ही कीच है नील कँवल तक काए करूँ उपाए

इक पल खींच निकारूँ दूजा और भी धँसता जाए

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रैन बड़ी कलमोही काया छाया एक करे

ऊषा की जय हो हर आशा असली रूप भरे

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