- पुस्तक सूची 182174
-
-
पुस्तकें विषयानुसार
-
बाल-साहित्य1657
औषधि571 आंदोलन257 नॉवेल / उपन्यास3452 -
पुस्तकें विषयानुसार
- बैत-बाज़ी12
- अनुक्रमणिका / सूची5
- अशआर62
- दीवान1336
- दोहा61
- महा-काव्य93
- व्याख्या149
- गीत87
- ग़ज़ल754
- हाइकु11
- हम्द33
- हास्य-व्यंग38
- संकलन1388
- कह-मुकरनी7
- कुल्लियात635
- माहिया16
- काव्य संग्रह4015
- मर्सिया332
- मसनवी687
- मुसद्दस44
- नात435
- नज़्म1026
- अन्य47
- पहेली14
- क़सीदा146
- क़व्वाली9
- क़ित'अ53
- रुबाई257
- मुख़म्मस18
- रेख़्ती16
- शेष-रचनाएं27
- सलाम28
- सेहरा8
- शहर आशोब, हज्व, ज़टल नामा13
- तारीख-गोई20
- अनुवाद78
- वासोख़्त24
अहमद जमाल पाशा के हास्य-व्यंग्य
यूनीवर्सिटी के लड़के
साहब लड़कों की तो आजकल भरमार है। जिधर देखिए लड़के ही लड़के नज़र आते हैं। गोया ख़ुदा की क़ुदरत का जलवा यही लड़के हैं। घर अंदर लड़के, घर बाहर लड़के, पास पड़ोस में लड़के, मुहल्ला मुहल्ला लड़के, गाँव और शहरों में लड़के, सूबे और मुल्क में लड़के, ग़रज़ ये कि दुनिया भर में
दफ़्तर में नौकरी
हमने दफ़्तर में क्यों नौकरी की और छोड़ी, आज भी लोग पूछते हैं मगर पूछने वाले तो नौकरी करने से पहले भी पूछा करते थे। “भई, आख़िर तुम नौकरी क्यों नहीं करते?” “नौकरी ढूंडते नहीं हो या मिलती नहीं?” “हाँ साहब, इन दिनों बड़ी बेरोज़गारी है।” “भई,
अदीबों की क़िस्में
हिंदुस्तान और पाकिस्तान की अगर राय शुमारी की जाये तो नव्वे फ़ीसदी अदीब निकलेगा बाक़ी दस फ़ीसदी पढ़ा लिखा, लेकिन अगर शोअरा हज़रात के सिलसिले में गिनती गिनी जाये तो पता चलेगा कि पूरा आवे का आवा ही टेढ़ा है। अब ज़रा ये भी सोचिए कि राय शुमारी करने वाले अमले
सितम ईजाद क्रिकेट और मैं बेचारा
मैं क्रिकेट से इसलिए भागता हूँ कि इसमें खेलना कम पड़ता है और मेहनत ज़्यादा करना पड़ती है। सारी मेहनत पर उस वक़्त पानी फिर जाता है जब खेलने वाली एक टीम हार जाती है। ईमान की बात है कि हमने “साइंस” को हमेशा रश्क की नज़रों से देखा मगर कभी उस मज़मून से दिल न
join rekhta family!
Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi
GET YOUR PASS
-
बाल-साहित्य1657
-