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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Akbar Ali Khan Arshi Zadah's Photo'

अकबर अली खान अर्शी जादह

1939 - 1997 | रामपुर, भारत

शायर और शोधकर्ता, ग़ालिब के दीवान और उनके पत्रों के हवाले से कई शोधपूर्ण कार्य किये

शायर और शोधकर्ता, ग़ालिब के दीवान और उनके पत्रों के हवाले से कई शोधपूर्ण कार्य किये

अकबर अली खान अर्शी जादह

ग़ज़ल 14

अशआर 23

ज़ब्त-ए-जुनूँ से अंदाज़ों पर दर तो बंद नहीं होते

तू मुझ से बढ़ कर रुस्वा हो ये भी तो हो सकता है

ये पड़ी हैं सदियों से किस लिए तिरे मेरे बीच जुदाइयाँ

कभी अपने घर तू मुझे बुला कभी रास्ते मिरे घर के देख

याद बन के पहलू में मौसमों के बिस्तर पर

करवटें बदलती हैं मेहरबानियाँ सारी

वो सुन रहा है मिरी बे-ज़बानियों की ज़बाँ

जो हर्फ़-ओ-सौत-ओ-सदा-ओ-ज़बाँ से पहले था

सर-ए-ख़ार से सर-ए-संग से जो है मेरा जिस्म लहू लहू

कभी तू भी तो मिरे संग-ए-मील कभी रंग मेरे सफ़र के देख

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