Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
Akhilesh Tiwari's Photo'

अखिलेश तिवारी

1966 | जयपुर, भारत

अखिलेश तिवारी के शेर

490
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

सुब्ह-सवेरा दफ़्तर बीवी बच्चे महफ़िल नींदें रात

यार किसी को मुश्किल भी होती है इस आसानी पर

बे-सबब कुछ भी नहीं होता है या यूँ कहिए

आग लगती है कहीं पर तो धुआँ होता है

फिसलन ये किनारों ये ठहराव नदी का

सब साफ़ इशारे हैं कि गहराई बहुत है

हँसना रोना पाना खोना मरना जीना पानी पर

पढ़िए तो क्या क्या लिक्खा है दरिया की पेशानी पर

ख़याल आया हमें भी ख़ुदा की रहमत का

सुनाई जब भी पड़ी है अज़ान पिंजरे में

हर-दम बदन की क़ैद का रोना फ़ुज़ूल है

मौसम सदाएँ दे तो बिखर जाना चाहिए

वह शक्ल वह शनाख़्त वह पैकर की आरज़ू

पत्थर की हो के रह गई पत्थर की आरज़ू

अक़्ल वालों में है गुज़र मेरा

मेरी दीवानगी सँभाल मुझे

तो क्या पलट के वही दिन फिर आने वाले हैं

कई दिनों से है दिल बे-क़रार पहले सा

क़दम बढ़ा तो लूँ आबादियों की सम्त मगर

मुझे वो ढूँढता तन्हाइयों में आया तो

जिसे परछाईं समझे थे हक़ीक़त में पैकर हो

परखना चाहिए था आप को उस शय को छू कर भी

यहीं से राह कोई आसमाँ को जाती थी

ख़याल आया हमें सीढ़ियाँ उतरते हुए

कोई तो बात है पिछले पहर में रातों के

ये बंद कमरा अजब रौशनी से भर जाए

Recitation

बोलिए