अख़्तर उस्मान के शेर
शाम आए और घर के लिए दिल मचल उठे
शाम आए और दिल के लिए कोई घर न हो
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शहर ख़ाली है किसे ईद मुबारक कहिए
चल दिए छोड़ के मक्का भी मदीना वाले
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वक़्त अब दस्तरस में है 'अख़्तर'
अब तो मैं जिस जहान तक हो आऊँ
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ये काएनात मिरे सामने है मिस्ल-ए-बिसात
कहीं जुनूँ में उलट दूँ न इस जहान को मैं