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Azhar Hashmi Sabqat's Photo'

अज़हर हाश्मी सबक़त

1990 | मुंगेर, भारत

अज़हर हाश्मी सबक़त

ग़ज़ल 16

अशआर 15

उसी पे सब्र है मुझ को हर एक दौर यहाँ

बहार आने से पहले ख़िज़ाँ से गुज़रा है

कहीं सुराग़ नहीं है किसी भी क़ातिल का

लहूलुहान मगर शहर का नज़ारा है

बस रंज की है दास्ताँ उन्वान हज़ारों

जीने के लिए मर गए इंसान हज़ारों

मिलती है ख़ुशी सब को जैसे ही कहीं से भी

भूली हुइ बचपन की तस्वीर निकलती है

सज्दे का सबब जान के शीरीं है परेशाँ

फ़रहाद ने कह डाला के रब ढूँड रहा हूँ

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