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चकबस्त ब्रिज नारायण

1882 - 1926 | लखनऊ, भारत

प्रमुख पूर्वाधुनिक शायर/रामायण पर अपनी नज़्म के लिए विख्यात/मशहूर शेर ‘जि़ंदगी क्या है अनासिर में ज़हूर-ए-तरतीब......’ के रचयिता

प्रमुख पूर्वाधुनिक शायर/रामायण पर अपनी नज़्म के लिए विख्यात/मशहूर शेर ‘जि़ंदगी क्या है अनासिर में ज़हूर-ए-तरतीब......’ के रचयिता

चकबस्त ब्रिज नारायण

ग़ज़ल 13

नज़्म 12

अशआर 21

ज़िंदगी क्या है अनासिर में ज़ुहूर-ए-तरतीब

मौत क्या है इन्हीं अज्ज़ा का परेशाँ होना

व्याख्या

चकबस्त का ये शे’र बहुत मशहूर है। ग़ालिब ने क्या ख़ूब कहा था;

हो गए मुज़्महिल क़ुवा ग़ालिब

अब अनासिर में एतिदाल कहाँ

मानव शरीर की रचना कुछ तत्वों से होती है। दार्शनिकों की दृष्टि में वो तत्व अग्नि, वायु, मिट्टी और जल हैं। इन तत्वों में जब भ्रम पैदा होता है तो मानव शरीर अपना संतुलन खो देता है। अर्थात ग़ालिब की भाषा में जब तत्वों में संतुलन नहीं रहता तो इंद्रियाँ अर्थात विभिन्न शक्तियां कमज़ोर होजाती हैं। चकबस्त इसी तथ्य की तरफ़ इशारा करते हैं कि जब तक मानव शरीर में तत्व क्रम में हैं मनुष्य जीवित रहता है। और जब ये तत्व परेशान हो जाते हैं अर्थात उनमें संतुलन और सामंजस्य नहीं रहता है तो मृत्यु होजाती है।

शफ़क़ सुपुरी

अगर दर्द-ए-मोहब्बत से इंसाँ आश्ना होता

कुछ मरने का ग़म होता जीने का मज़ा होता

अदब ता'लीम का जौहर है ज़ेवर है जवानी का

वही शागिर्द हैं जो ख़िदमत-ए-उस्ताद करते हैं

इक सिलसिला हवस का है इंसाँ की ज़िंदगी

इस एक मुश्त-ए-ख़ाक को ग़म दो-जहाँ के हैं

वतन की ख़ाक से मर कर भी हम को उन्स बाक़ी है

मज़ा दामान-ए-मादर का है इस मिट्टी के दामन में

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