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ग़ज़नफ़र के शेर
ग़ज़नफ़रहमारे हाथ से वो भी निकल गया आख़िर
कि जिस ख़याल में हम मुद्दतों से खोए थे
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ग़ज़नफ़ररफ़्ता रफ़्ता आँखों को हैरानी दे कर जाएगा
ख़्वाबों का ये शौक़ हमें वीरानी दे कर जाएगा
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ग़ज़नफ़रदफ़्तर में ज़ेहन घर पे निगह रास्ते में पाँव
जीने की काविशों में बदन हाथ से गया
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ग़ज़नफ़रहर एक रात कहीं दूर भाग जाता हूँ
हर एक सुब्ह कोई मुझ को खींच लाता है
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ग़ज़नफ़रबच के दुनिया से घर चले आए
घर से बचने मगर किधर जाएँ
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ग़ज़नफ़रमैं उस के झूट को भी सच समझ के सुनता हूँ
कि उस के झूट में भी ज़िंदगी की क़ुव्वत है
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ग़ज़नफ़रमैं ऐसा नर्म तबीअत कभी न था पहले
ज़रूर लम्स कोई उस का छू गया मुझ को
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ग़ज़नफ़रहम कि साहिल के तसव्वुर से सहम जाते हैं
लोग किस तरह समुंदर में उतरते होंगे
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ग़ज़नफ़रन जाने किस तरह बिस्तर में घुस कर बैठ जाती हैं
वो आवाज़ें जिन्हें हम रोज़ बाहर छोड़ आते हैं
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ग़ज़नफ़रतुम्हारे होते हुए लोग क्यूँ भटकते हैं
कहीं पे ख़िज़्र नज़र आए तो सवाल करूँ
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ग़ज़नफ़रकल तक जो शफ़्फ़ाफ़ थे चेहरे आवाज़ों से ख़ाली थे
आड़ी-तिरछी सुर्ख़ लकीरें उन पर भी अब देखोगे
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ग़ज़नफ़रज़ेहन के ख़ानों में जाने वक़्त ने क्या भर दिया
बे-सबब होने लगी इक एक से अन-बन मिरी
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ग़ज़नफ़रअजीब बात हमारा ही ख़ूँ हुआ पानी
हमीं ने आग में अपने बदन भिगोए थे
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बाल-साहित्य1925
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