गुलज़ार देहलवी के शेर
उम्र जो बे-ख़ुदी में गुज़री है
बस वही आगही में गुज़री है
जहाँ इंसानियत वहशत के हाथों ज़ब्ह होती हो
जहाँ तज़लील है जीना वहाँ बेहतर है मर जाना
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मीर के बाद ग़ालिब ओ इक़बाल
इक सदा, इक सदी में गुज़री है
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हाए क्या दौर-ए-ज़िंदगी गुज़रा
वाक़िए हो गए कहानी से
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