संपूर्ण
परिचय
ग़ज़ल26
शेर21
हास्य शायरी1
ई-पुस्तक3
चित्र शायरी 1
ऑडियो 1
वीडियो4
क़िस्सा14
तंज़-ओ-मज़ाह1
हरी चंद अख़्तर के क़िस्से
कामयाब मुशायरा?
मसूरी के मुशायरे से वापसी पर जगन्नाथ आज़ाद, हरिचंद अख़्तर, बिस्मिल सईदी टोंकी कुछ और शायरों के साथ सफ़र कर रहे थे। हरिचंद अख़्तर ने बातचीत के दौरान कहा, “मसूरी का मुशायरा बहुत बेकार रहा है।” आज़ाद साहब इज़हार-ए-हैरत करते हुए बोले, “अख़्तर साहब मुशायरा
पंडित जी की ग़लत उर्दू
हरिचंद अख़्तर एक दिन जोश साहब से मिलने गए तो जाते ही पूछा, “जनाब आपके मिज़ाज कैसे हैं?” जोश साहब ने फ़रमाया, “पंडित जी, आप तो ग़लत उर्दू बोलते हैं। आपने ये कैसे कह दिया कि आपके मिज़ाज कैसे हैं। जबकि मेरा तो सिर्फ़ एक ही मिज़ाज है, न कि बहुत से मिज़ाज।” कुछ
ये दिल है, ये जिगर है, ये कलेजा
मुहतरमा बेगम हमीदा सुलतान साहिबा जनरल सेक्रेटरी अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू (दिल्ली) के हाँ अली मंज़िल में एक शे’री नशिस्त में मरहूम हज़रत नूह नारवी ग़ज़ल सुना रहे थे। रदीफ़ थी ‘क्या-क्या’ नूह साहब ने अपनी मख़्सूस तहत-उल-लफ्ज़ तर्ज़-ए-अदा में जब ये मिसरा पढ़ा, ये
ड्रामे पर ड्रामा
डाक्टर मुहम्मद दीन तासीर प्रिंसिपल इस्लामिया कॉलेज लाहौर की फ़रमाइश पर पंडित हरिचंद अख़्तर ने इस्लामिया कॉलेज के तलबा के लिए एक ड्रामा लिखा था। पंडित जी ने वो ड्रामा बुख़ारी साहब को दिखाया। बुख़ारी साहब ने उसे अव्वल से आख़िर तक पढ़ डाला और उन्हें ऐसा पसंद
बाग़बानों की ज़बान
जोश मलीहाबादी और पंडित हरिचंद अख़्तर के दरमियान ज़बान के मसले पर बहस छिड़ गयी। जोश साहब का रवैय्या बहस के दौरान में अक्सर ये होता है कि मुस्तनद है मेरा फ़रमाया हुआ लेकिन अख़्तर साहब भी बेढब क़िस्म के अदीब थे। जब बहस ने तवालत पकड़ी तो अख़्तर साहब ने फ़रमाया, “मैं
बड़े शेर की तारीफ़
चंद अदब ज़ौक़ हज़रात उर्दू के एक शायर की मद्ह-सराई कर रहे थे। उनमें से एक ने कहा, “साहब इनकी क्या बात है। बहुत बड़े शायर हैं। अब तो हुकूमत के ख़र्च पर यूरोप भी हो आए हैं।” हरिचंद अख़्तर ने ये बात सुनी तो निहायत मतानत से कहा, “जनाब अगर किसी दूसरे मुल्क में
इत्तिफ़ाक़ के नुक़्सानात
सालाना इम्तिहान में मज़मून का मौज़ू था, “इत्तफ़ाक़।” उस्ताद ने तलबा को बता रखा था कि जब किसी चीज़ पर मज़मून लिखना हो तो तीन चीज़ों का ख़्याल रखो। (1) तमहीद, यानी उस चीज़ की वज़ाहत जिसपर मज़मून लिखना हो। (2) फ़वाइद, फिर उसके फ़ायदे बयान करो। (3) नुक़्सानात,
मश्क़-ए-कातिब
पंडित हरिचंद अख़्तर साहब का एक दोस्त उन्हें रास्ते में मिल गया और कहने लगा, “पंडित जी, आपको दावतनामा तो मिल गया होगा। आइन्दा हफ़्ते के दिन मेरे बड़े लड़के की शादी हो रही है। आज उसके सेहरे की किताबत करवाने के लिए यहाँ आया था। अब उसे छपवाने के लिए प्रेस
इज़ारबंद, कमरबंद, दिल-बंद और देवबंद
अलीगढ़ के मुशायरे में जब अल्लामा अनवर साबरी देवबंदी का नाम पुकारा गया तो हरिचंद अख़्तर फ़रमाने लगे कि इज़ारबंद, कमरबंद, दिल बंद तो सुना था, ये देवबंद क्या बला है। फिर ख़ुद ही अनवर साबरी साहब के डीलडौल को देखकर कहने लगे कि, “हाँ समझ गया देवबंद का नाम इसलिए
ख़ुदा के दो वादे
एक महफ़िल में एक शायर-ए-नामदार का ज़िक्र आया जो उन दिनों ऑल इंडिया रेडियो पर अपने आपको पूरी तरह मुसल्लत समझता था। पंडित हरिचंद अख़्तर फ़रमाने लगे, साहब, किस जाहिल-ए-मुतलक़ का नाम ले रहे हो। गुलज़ार देहलवी कहने लगे, पंडित जी उन्हें जाहिल-ए-मुतलक़ कह रहे
ख़्वाजा दिल मुहम्मद रोड
ख़्वाजा दिल मुहम्मद दिल इस्लामिया कॉलेज लाहौर में हिसाब के प्रोफ़ेसर थे। लाहौर म्युनिसिपल कारपोरेशन ने कॉलेज के पीछे वाली सड़क का नाम उनके नाम पर ख़्वाजा दिल मुहम्मद रोड रख दिया था। हरिचंद अख़्तर एक दिन कुछ दोस्तों के साथ गुज़र रहे थे। उनकी नज़र सड़क पर लगे
ऊँट की मींगनी
अनवर साबरी लायलपुर के मुशायरे में कलाम पढ़ने के लिए खड़े हुए तो उन्होंने कहा कि मेरी तबीयत ख़राब है, इसलिए में आज सिर्फ़ पाँच शे’र ही सुनाऊँगा। हरिचंद अख़्तर ने जो मुशायरे की निज़ामत कर रहे थे फ़रमाया, “हज़रत, ये तो ऐसे लगेगा जैसे ऊँट मेंगनीं दे रहा हो।” (अनवर