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हयातुल्लाह अंसारी की कहानियाँ
माँ बेटा
धार्मिक अतिवाद से परेशान एक हिंदू बेटे और मुसलमान माँ की कहानी। वे दोनों बिल्कुल अलग थे। अलग माहौल, समाज और एक-दूसरे के धर्म से सख़्त नफ़रत करने वाले, लेकिन उनके उजड़ने की कहानी एक जैसी थी। फिर इत्तेफ़ाक़ से जब वे मिले और एक दूसरे की कहानी सुनी तो उनकी सोच पूरी तरह से बदल गई।
आख़िरी कोशिश
यह एक ऐसे शख़्स की कहानी है, जिसने बेहतर ज़िंदगी की तलाश में अपनी ज़िंदगी के 25 साल कोलकाता में गुज़ार दिए, मगर हासिल कुछ नहीं कर पाया। जैसा वह 25 साल पहले शहर गया था वैसा ही वापस लौट आता है। गाँव में भी उसके सामने बदहाली और ग़रीबी मुंह फाड़े खड़ी रहती है। घर की हालत को लेकर उसका अपने छोटे भाई से कई बार झगड़ा भी होता है। फिर दोनों भाई मिलकर एक नया काम शुरू करने का मंसूबा बनाते हैं।
भीक
एक ऐसे शख़्स की कहानी, जो पहाड़ों पर सैर करने गया है। वहाँ उसे एक ग़रीब लड़की मिलती है, जिसे वह अपने यहाँ नौकरी करने का ऑफ़र देता है। मगर अगले दिन उम्मीद से भरी जब वह लड़की अपने छोटे भाई-बहनों को लेकर डाक-बंगले पर पहुँचती है तो एक साथ इतने बच्चों को देखकर वह उसे नौकरी पर रखने से मना कर देता है। इंकार सुनकर लड़की जब वापस जाने लगती है तो वह उसे दो रूपये दे देता है।
ढ़ाई सेर आटा
यह एक मज़दूर की कहानी है, जो बहुत मुश्किल से अपने कुंबे का पेट भर पाता है। एक रोज़ काम से लौटते हुए उसे सड़क पर ढाई सेर आटा पड़ा हुआ मिल जाता है। वह आटे को समेटता है और घर ले आता है। उस आटे की भी अपनी ही कहानी होती है। वह आटा एक मुद्दत बाद उसके और उसके बच्चों के चेहरे पर ख़ुशी और राहत का एहसास दिलाता है।
शुक्र-गुज़ार आँखें
यह एक ऐसे शख़्स की कहानी है, जो दंगाइयों के एक ऐसे गिरोह में शामिल होता है, जो एक ट्रेन को घेर कर रोक लेता है। गिरोह ट्रेन में बैठे मुसलमानों को उतार लेता है। उनमें एक नवदंपत्ति भी होता है। वह शख़्स नवदंपत्ति के दूल्हे को मार देता है और फिर दुल्हन की इल्तिजा पर उसे भी मौत के घाट उतार देता है। मरते वक़्त दुल्हन की आँखों में कुछ ऐसा भाव था जिसे वह सारी ज़िंदगी कभी भुला नहीं पाया।
अंधेरा उजाला
यह एक जेब कतरे की कहानी है, जो अपने काम में जितना परफे़क्ट है परिवार के मामले में उतना ही नाकाम। उसकी बेटी एक दूसरे जेब कतरे के बेटे के साथ भाग जाती है और बेटा भी एक दूसरे जेब कतरे के साथ एक आपत्तिजनक हालत में पुलिस के हत्थे चढ़ जाता है।
बेहद मामूली
नस्ली बरतरी पर यक़ीन करने वाले एक ऐसे शख़्स की कहानी, जिसकी बीवी एक भिखारन के बच्चों को पालने के लिए घर ले आती है। प्रोफ़ेसर दारा मिर्ज़ा का यक़ीन है कि अज़ीम शख़्सियतें सिर्फ़ बरतर नस्लों में ही पैदा होती हैं। वहीं उनकी बीवी का मानना है कि किसी की महानता या कामयाबी का सिरा उसकी नस्ल में नहीं, परवरिश में होती है।
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बाल-साहित्य1926
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