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इफ़्तिख़ार हैदर

1975 | लाहौर, पाकिस्तान

इफ़्तिख़ार हैदर

ग़ज़ल 21

अशआर 18

शाम होते ही तेरे हिज्र का दुख

दिल में ख़ेमा लगा के बैठ गया

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शहर में थी ना-साज़ तबीअत बेटे की

गाँव में बैठी माँ ने खाना छोड़ दिया

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अपने लहजे पे ग़ौर कर के बता

लफ़्ज़ कितने हैं तीर कितने हैं

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तिरे बग़ैर गुज़ारा नहीं किसी सूरत

उसे ये बात बताने से बात बिगड़ी है

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मीर के कुछ अशआ'र मिला कर राशिद की कुछ नज़्मों में

वहशत की आमेज़िश कर के इक उस्लूब बनाना है

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