जावेद नासिर के शेर
बहुत उदास था उस दिन मगर हुआ क्या था
हर एक बात भली थी तो फिर बुरा क्या था
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दश्त की धूप है जंगल की घनी रातें हैं
इस कहानी में बहर हाल कई बातें हैं
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दोस्तो तुम से गुज़ारिश है यहाँ मत आओ
इस बड़े शहर में तन्हाई भी मर जाती है
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टैग : शहर
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रात आ जाए तो फिर तुझ को पुकारूँ या-रब
मेरी आवाज़ उजाले में बिखर जाती है
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टैग : रात
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ख़ुदा आबाद रक्खे ज़िंदगी को
हमारी ख़ामुशी को सह गई है
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टैग : ज़िंदगी
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घड़ी जो बीत गई उस का भी शुमार किया
निसाब-ए-जाँ में तिरी ख़ामुशी भी शामिल की
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टैग : ख़ामोशी
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आहट भी अगर की तो तह-ए-ज़ात नहीं की
लफ़्ज़ों ने कई दिन से कोई बात नहीं की
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टैग : आहट
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उठ उठ के आसमाँ को बताती है धूल क्यूँ
मिट्टी में दफ़्न हो गए कितने सदफ़ यहाँ
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क्या कहानी को इसी मोड़ प रुकना होगा
रौशनी है न समुंदर है न बरसातें हैं
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किन किन की आत्माएँ पहाड़ों में क़ैद हैं
आवाज़ दो तो बजते हैं पत्थर के दफ़ यहाँ
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जुम्बिश-ए-मेहर है हर लफ़्ज़ तिरी बातों का
रंग उड़ता नहीं आँखों से मुलाक़ातों का
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खुलती हैं आसमाँ में समुंदर की खिड़कियाँ
बे-दीन रास्तों पे कहीं अपना घर तो है
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