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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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जयंत परमार

1955 | अहमदाबाद, भारत

साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित, उर्दू में दलित विशर्ष दाखिल करने वाले पहले शायर

साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित, उर्दू में दलित विशर्ष दाखिल करने वाले पहले शायर

जयंत परमार के दोहे

आस बँधाती है सदा सुख की होगी भोर

अपने इरादों को अभी मत करना कमज़ोर

चाहत की भाषा नहीं शब्दों को मत तोल

ख़ामोशी का गीत सुन चाँद की खिड़की खोल

जाड़े की रुत है नई तन पर नीली शाल

तेरे साथ अच्छी लगी सर्दी अब के साल

माँग भरूँ सिंदूर से सजूँ सोला-सिंगार

जब तक पहनूँगी नहीं उन बाहोँ का हार

लाख छुपाए छुपे इन रातों का भेद

आँखों के आकाश में पढ़े थे चारों वेद

मैं हूँ और ये दूर तक धूप का रस्ता साथ

काँधे पर साया कोई रख देता है हाथ

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