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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Kamil Bahzadi's Photo'

कामिल बहज़ादी

1934 | भोपाल, भारत

कामिल बहज़ादी के शेर

आकाश की हसीन फ़ज़ाओं में खो गया

मैं इस क़दर उड़ा कि ख़लाओं में खो गया

तअल्लुक़ है अब तर्क-ए-तअल्लुक़

ख़ुदा जाने ये कैसी दुश्मनी है

इस क़दर मैं ने सुलगते हुए घर देखे हैं

अब तो चुभने लगे आँखों में उजाले मुझ को

क्या तिरे शहर के इंसान हैं पत्थर की तरह

कोई नग़्मा कोई पायल कोई झंकार नहीं

लोग भोपाल की तारीफ़ किया करते हैं

इस नगर में तो तिरे घर के सिवा कुछ भी नहीं

आप दामन को सितारों से सजाए रखिए

मेरी क़िस्मत में तो पत्थर के सिवा कुछ भी नहीं

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