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 कौसर मज़हरी के शेरकौसर मज़हरीजाने किस ख़्वाब-ए-परेशाँ का है चक्कर सारा बिखरा बिखरा हुआ रहता है मिरा घर सारा 
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 कौसर मज़हरीनज़र झुक रही है ख़मोशी है लब पर हया है अदा है कि अन-बन है क्या है 
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 कौसर मज़हरीरब्त है उस को ज़माने से बहुत सुनता हूँ कोई तरकीब करूँ मैं भी ज़माना हो जाऊँ 
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 कौसर मज़हरीबोझ दिल पर है नदामत का तो ऐसा कर लो मेरे सीने से किसी और बहाने लग जाओ 
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 कौसर मज़हरीकौन सी दुनिया में हूँ किस की निगहबानी में हूँ ज़िंदगी है सख़्त मुश्किल फिर भी आसानी में हूँ 
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 कौसर मज़हरीतआक़ुब में है मेरे याद किस की मैं किस को भूल जाना चाहता हूँ - 
                                    
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 कौसर मज़हरीएक मुद्दत से ख़मोशी का है पहरा हर-सू जाने किस ओर गए शोर मचाने वाले 
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 कौसर मज़हरीचाँद है पानी में या भूले हुए चेहरे का अक्स साहिल-ए-दरिया पे देखो मैं भी हैरानी में हूँ 
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 कौसर मज़हरीमैं सब के वास्ते अच्छा था लेकिन उसी के वास्ते अच्छा नहीं था 
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 कौसर मज़हरीउस की पलकों पे जो चमका था सितारा कोई देखते देखते महताब हुआ जाता है 
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 कौसर मज़हरीपुतलियों पर रक़्स करना ही कमाल-ए-फ़न नहीं दर्द के आँसू को तो पैहम रवानी चाहिए 
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 कौसर मज़हरीमौसम-ए-दिल जो कभी ज़र्द सा होने लग जाए अपना दिल ख़ून करो फूल उगाने लग जाओ 
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 कौसर मज़हरीगिरा था बोझ कोई सर से मेरे उसी को फिर उठाना चाहता हूँ 
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 कौसर मज़हरीवही क़तरा जो कभी कुंज-ए-सर-ए-चश्म में था अब जो फैला है तो सैलाब हुआ जाता है 
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