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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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मलिका नसीम

1954

मलिका नसीम

ग़ज़ल 19

नज़्म 15

अशआर 11

कर गईं मौजें शरारत जब भी लिक्खा तेरा नाम

रेत पर जितनी लकीरें थीं वो सब मिल-जुल गईं

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ख़्वाब ठहरे थे तो आँखें भीगने से बच गईं

वर्ना चेहरे पर तो ग़म की बारिशों का अक्स है

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नज़र में यादों के मंज़र समेट कर रखना

मैं जैसा छोड़ के आई हूँ वैसा घर रखना

वो लड़कियाँ कि जो लगती थीं सादा तहरीरें

पढ़ी गईं तो अनोखी पहेलियाँ निकलीं

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शिद्दत-ए-तिश्ना-लबी आज कहाँ लाई है

प्यास सहरा की समुंदर में उतर आई है

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क़ितआ 1

 

पुस्तकें 4

 

ऑडियो 3

अगर चाहूँ झटक कर तोड़ दूँ ज़ंजीर-ए-तन्हाई

सुलगती शाम की दहलीज़ पर जलता दिया रखना

हवा के दोश पे किस के पयाम आते हैं

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