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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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मौलाना जलालुद्दीन रूमी

1207 - 1273 | कोन्या, तुर्की

मशहूर फ़ारसी शाइ’र, मसनवी-ए-मा’नवी, फ़िहि माफ़ीह और दीवान-ए-शम्स तबरेज़ी के मुसन्निफ़

मशहूर फ़ारसी शाइ’र, मसनवी-ए-मा’नवी, फ़िहि माफ़ीह और दीवान-ए-शम्स तबरेज़ी के मुसन्निफ़

मौलाना जलालुद्दीन रूमी के उद्धरण

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बेवक़ूफ़ की सोहबत से तन्हाई बेहतर है।

जो इल्म तुझे तुझ से ले ले उस इल्म से जहल बेहतर है।

दुनिया हासिल करना कोई बुराई नहीं लेकिन जब दुनिया को आख़िरत पर तरजीह दी जाए तो फिर सरासर ख़सारा ही है।

हर फ़र्द किसी ख़ास मक़सद के लिए पैदा होता है और उस वक़्त के हुसूल की ख़्वाहिश पहले ही से उसके दिल में रख दी जाती है।

तलब सादिक़ हो तो ख़ुदा की मदद से पहुँच जाया करती है।

हक़ीक़त और मजाज़ का फ़र्क तुझे उसी वक़्त मालूम हो सकता है, जब सुरमाए इंसानियत तेरी चश्म-ए-बसीरत को साफ़ कर चुका हो।

जिस शख़्स का ख़ुदा ख़ुद निगेहबान हो उसका तहफ़्फ़ुज़ मुर्ग़-ओ-माही भी करते हैं।

मह्बूब-ए-हक़ीक़ी! आप की मोहब्बत में मुझ को नारा-ए-मस्ताना बहुत अच्छा लगता है। क़यामत तक महबूब मैं इसी दीवानगी और वा-रफ़्तगी को महबूब रखना चाहता हूँ |

मख्लूक़-ए-ख़ुदा पर रहम करने से दुनिया और आख़िरत में सरफ़राज़ी अता होती है।

कब बंदा को यह हक़ पहुँचता है कि वह ख़ुदा की आज़माइश और इम्तिहान की जुरअत करे।

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