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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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मीर सज्जाद

1722 - 1806

मीर सज्जाद

ग़ज़ल 1

 

अशआर 2

इश्क़ की नाव पार क्या होवे

जो ये कश्ती तरे तो बस डूबे

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मैं ने जाना था क़लम-बंद करेगा दो हर्फ़

शौक़ के लिखने का 'सज्जाद' ने खोला दफ़्तर

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