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मोहम्मद अली साहिल

1964 | इटावा, भारत

मोहम्मद अली साहिल

ग़ज़ल 16

अशआर 11

दूर रहती हैं सदा उन से बलाएँ साहिल

अपने माँ बाप की जो रोज़ दुआ लेते हैं

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ख़ामुशी तेरी मिरी जान लिए लेती है

अपनी तस्वीर से बाहर तुझे आना होगा

हम हैं तहज़ीब के अलम-बरदार

हम को उर्दू ज़बान आती है

मसअले तो ज़िंदगी में रोज़ आते हैं मगर

ज़िंदगी के मसअलों का हल निकलना चाहिए

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मेरी आँखों में हुए रौशन जो अश्कों के चराग़

उन के होंटों पर तबस्सुम का दिया जलता रहा

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पुस्तकें 3

 

चित्र शायरी 1

 

वीडियो 13

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वीडियो का सेक्शन
शायर अपना कलाम पढ़ते हुए
मोहम्मद अली साहिल

मोहम्मद अली साहिल

मोहम्मद अली साहिल

मोहम्मद अली साहिल

मोहम्मद अली साहिल

मोहम्मद अली साहिल

अब हक़ीक़त लग रहा है मेरा अफ़्साना मुझे

मोहम्मद अली साहिल

ऐसा नहीं सलाम किया और गुज़र गए

मोहम्मद अली साहिल

ऐसा नहीं सलाम किया और गुज़र गए

मोहम्मद अली साहिल

तिरी सूरत मुझे बताती है

मोहम्मद अली साहिल

मिरी तरफ़ से निगाहें तो वो हटा लेगा

मोहम्मद अली साहिल

ये दर्द का है मुसलसल जो सिलसिला क्यूँ है

मोहम्मद अली साहिल

राह-ए-हक़ में तुझे हस्ती को मिटाना होगा

मोहम्मद अली साहिल

हम क़लंदर हैं हमें आता है फ़ाक़ा करना

मोहम्मद अली साहिल

हर एक हाथ में पत्थर है क्या किया जाए

मोहम्मद अली साहिल

हादसा तो बस इक बहाना था

मोहम्मद अली साहिल

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