- पुस्तक सूची 181957
-
-
पुस्तकें विषयानुसार
-
बाल-साहित्य1657
औषधि570 आंदोलन257 नॉवेल / उपन्यास3440 -
पुस्तकें विषयानुसार
- बैत-बाज़ी12
- अनुक्रमणिका / सूची5
- अशआर62
- दीवान1335
- दोहा61
- महा-काव्य93
- व्याख्या149
- गीत87
- ग़ज़ल753
- हाइकु11
- हम्द33
- हास्य-व्यंग38
- संकलन1387
- कह-मुकरनी7
- कुल्लियात635
- माहिया16
- काव्य संग्रह4014
- मर्सिया332
- मसनवी687
- मुसद्दस44
- नात433
- नज़्म1026
- अन्य47
- पहेली14
- क़सीदा145
- क़व्वाली9
- क़ित'अ53
- रुबाई257
- मुख़म्मस18
- रेख़्ती16
- शेष-रचनाएं27
- सलाम28
- सेहरा8
- शहर आशोब, हज्व, ज़टल नामा13
- तारीख-गोई20
- अनुवाद78
- वासोख़्त24
मोहम्मद यूनुस बट के हास्य-व्यंग्य
सिगरेट Noशी
साहब, मैं तो अख़बार इसलिए पढ़ता था कि दुनिया के बारे में मेरी मालूमात अपटूडेट रहें। आज का अख़बार पढ़ कर पता चला कि मेरी तो अपने बारे में मालूमात अपटूडेट नहीं हैं। यहाँ डेट से मुराद वो नहीं जो आप समझ रहे हैं। अमरीकी डाक्टरों ने तहक़ीक़ के बाद बताया है कि
ईद मिलना
मिर्ज़ा साहब हमारे हम-साए थे, यानी उनके घर में जो दरख़्त था उस का साया हमारे घर में भी आता था। अल्लाह ने उन्हें सब कुछ वाफ़िर मिक़दार में दे रखा था। बच्चे इतने थे कि बंदा उनके घर जाता तो लगता स्कूल में आ गया है। उनके हाँ एक पानी का तालाब था जिसमें सब बच्चे
कुछ सिगरेट के बारे में
साइंसदानों ने अपनी तरफ़ से ये बुरी ख़बर सुनाई है कि हर बड़े शहर की हवा में एक दिन सांस लेना दो पैकेट सिगरेट पीने के बराबर है। हालाँकि इससे अच्छी ख़बर और क्या होगी कि हम मुफ़्त में रोज़ाना दो डिब्बी सिगरेट पीते हैं। मुझे तो गाँव की साफ़ फ़िज़ाओं में रहने वालों
मुल्ला नसीरुद्दीन
सारी दुनिया उन्हें पीर समझती है मगर वो ख़ुद को पीर नहीं, जवान समझते हैं। देखने में सियास्तदान नहीं लगते और बोलने में पीर नहीं लगते। क़द इतना ही बड़ा, जितने लम्बे हाथ रखते हैं। चलते हुए पाँव यूँ एहतियात से ज़मीन पर रखते हैं कि कहीं बे एहतियाती से मुरीदों
हसीना एटम बम
उसे शायद एटम बम इसलिए कहते हैं कि जो हीरो उसके साथ एक गाना फ़िल्मा ले, वो फिर हीरो कम और हीरोशीमा ज़्यादा लगने लगता है। वो फ़िल्म इंडस्ट्री के क़ाबिल-ए-दीद मक़ामात में से एक है। बचपन ही से उसमें अदाकारा बनने की सलाहियतें थीं। यानी दिन का काम रात को करती।
पीर साहब की करामत
इससे क़ब्ल हमने सिर्फ़ एक पीर साहब की करामत देखी थी, उनके मुरीद ने बताया कि पीर साहब बे-जान को जानदार बना देते हैं। हमने अपनी आँखों से देखा कि पीर साहब के सामने जो मिठाई का ढेर था, वो एक मिनट में गोश्त-पोस्त का ढेर बन गया। बस एक लड्डू गोश्त में बदलने
शौहर-ए-आज़म
वो मिर्ज़ा जट की नस्ल से हैं। इसलिए जिस ख़ातून को भी देखा उसे साहबा नहीं साहिबां ही समझा। हर वक़्त कुछ न कुछ करते रहते हैं। जब चंद घंटों के लिए फ़ारिग़ हों और काम न हो तो शादी कर लेते हैं। तालीम तो उनकी उतनी ही है जितनी ग़ुलाम हैदर वाएं साहब की है और वाएं
join rekhta family!
Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi
GET YOUR PASS
-
बाल-साहित्य1657
-