मुईद रशीदी का परिचय
उपनाम : 'मुईद रशीदी'
मूल नाम : अब्दुल मुईद
जन्म : 27 Jan 1988 | कोलकाता, पश्चिम बंगाल
LCCN :n2010207644
ऐ वहशत-ए-सहरा मिरे क़दमों से लिपट जा
अब इस से ज़ियादा तो बिखरने से रहा मैं
मुईद रशीदी की पैदाइश काँकीनारा (उत्तर कलकत्ता) में 1988 को हुई । वो हमारे युग के नए विचारों के शायर हैं। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी से एम.ए. किया। दिल्ली विश्वविद्यालय से एम.फ़िल. की उपाधि प्राप्त की। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ने 'जदीद ग़ज़ल की शेरियात’ पर उन्हें (ब-हैसियत-ए-उस्ताद) पी.एच.डी. की उपाधि प्रदान की। वो तीन साल तक ऑल इंडिया रेडियो के दिल्ली स्टेशन से कंपेयर/प्रिज़ेंटर के रूप में जुड़े रहे। उन्होंने तीन साल तक क़ौमी कौंसिल बराए फ़रोग़-ए-उर्दू ज़बान, नई दिल्ली में रिसर्च अस्सिटेंट के रूप में अपनी सेवाएँ दीं। 2013 में उन्हें साहित्य अकादेमी दिल्ली, ने अपने युवा साहित्य पुरस्कार से नवाज़ा। वो सात किताबों के लेखक और शायर हैं। 'तख़्लीक़, तख़ईल और इस्तिआरा’ उनकी प्रसिद्धि की अस्ल वजह बनी। मोमिन ख़ाँ मोमिन पर उनकी किताब को अकादमिक हलक़ों में महत्व दिया गया और इस पुस्तक ने विश्वविद्यालयों में विश्वसनीयता प्राप्त की। रेख़्ता फ़ाउंडेशन ने उनका काव्य संग्रह ‘आख़िरी किनारे पर’ (उर्दू में) और ‘इश्क़’ (हिन्दी में) प्रकाशित किया है। वो हिंदुस्तान और हिंदुस्तान से बाहर कई मुशायरों में शिरकत कर चुके हैं। वर्तमान में वो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के उर्दू विभाग से वाबस्ता हैं और पठन-पाठन के कर्तव्य का निर्वाह कर रहे हैं।
मुईद रशीदी की शायरी विभिन्न प्रकार के तज्रबात, अनुभवों, भावनाओं और संवेदनाओं की विविधता में अंधकार को प्रकाश का संदर्भ बनाती है। व्यक्तित्व की पेचीदगियों में उतरकर कायनात के रहस्यों की खोज करती है। उनकी ग़ज़ल में बाहरी और अंतःकरण के मेल से रचनात्मक संसार बनता है जिसकी बुनियादें शब्द और उसके संबंध, अर्थ और उसके रहस्य प्रदान करते हैं।
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