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मुबश्शिर अली ज़ैदी के लघु कथाएँ
दोस्त
“आप हंसते हैं तो ये दुनिया आपके साथ हँसती है। आप रोते हैं तो ये आप पर हँसती है।” चार्ली चैपलिन ने कहा। मैंने उसकी बात सच्च मान ली। लोग वाक़ई उसकी हर हरकत पर हंसते हैं। मैं उसका इंटरव्यू करने पहुंचा था। वो ड्रेसिंग रुम में था। तैयार होने के बाद
जश्न
अफ़्रीक़ा के दो क़बीले पच्चास साल पुरानी जंग की याद मना रहे थे। मैं तनज़ानिया में था, जब मुझे ख़बर मिली। मेरी फ़र्माइश पर मेज़बान मुझे वहां ले गए। रंगारंग मेले में सैकड़ों क़बाइली शरीक थे। कहीं लोक गीतों पर रिवायती रक़्स जारी था। कहीं कोई बूढ़ा जवानी
इनाम
मैं जिस सरकारी दफ़्तर में काम करता हूँ, वहां ख़्वाब ख़रीदे जाते हैं। कुछ शहरी अपने ख़्वाब कौड़ियों के मोल बेच देते हैं। कुछ ख़्वाबों के बदले अशर्फ़ियां दी जाती हैं। गुज़शता हफ़्ते एक नौजवान ने सुनाया, “मैंने ख़्वाब देखा है कि वडेरों की ज़मीनें छीन कर ग़रीब
रौशनी
सूरज निकलता है तो बापू खेत में काम करता है, माँ चक्की पीसती है, बहन कपड़े सीती है, भाई फुटबॉल खेलता है, मैं खिड़की से छन कर आने वाली रोशनी में किताब पढ़ता हूँ। हमारे गांव में बिजली नहीं है। एक दिन मैंने बापू से कहा, “सूरज डूबने के बाद तुम खेत से
सस्ता
सस्ता मैं फिल्मों में अक्सर प्यासा रह जाता था। एक रात शो ख़त्म होने के बाद सिनेमा से निकल पड़ा। ढूंढता ढांडता एक फास्टफ़ुड चेन के रेस्टोरेंट पहुंचा। “क्या मुझे इन्सानी ख़ून की दो बोतलें मिल सकती हैं?” मैंने पूछा। “जी हाँ मिस्टर ड्रेकुला! कौन सा ब्रांड
राशन
“मेरे टीवी में एक किलो, क्रिकेट मैच डाल दो।” मैंने परचून फ़रोश से कहा। उसने बोरी से क्रिकेट मैच निकाले और टीवी में पलट दिए। मैं पहली तारीख़ को महीने का सौदा लेने गया था। “साहिब जी! और?” दुकानदार ने पूछा। “दस किलो सियासी लफ़ड़ा, डेढ़ किलो टॉक शोज़। दो
इन्सान
वो इन्सान रास्ता भूल के जंगल में घुस गया था। सबसे पहले उसकी राह में शेर आया। लेकिन शेर का पेट भरा हुआ था। उसने आँख उठाकर न देखा। अलबत्ता एक रीछ इन्सान के पीछे पड़ गया। इन्सान तेज़ भागा तो रीछ तआक़ुब न कर सका। जंगल की नदी में मगरमच्छ दिखाई दिए। इन्सान
रोते क्यों हो?
“क्या इस ट्रेन में कोई टिकट चेकर आता है?” मैंने बर्लिन में सफ़र करते हुए पूछा। “कोई मेरा टिकट क्यों चेक करेगा?” जर्मन दोस्त ने हैरान हो कर कहा। “फ़र्ज़ करो, तुम टिकट नहीं लेते। फिर?” उसने फ़र्ज़ करने की कोशिश की लेकिन नाकाम रहा। “क्या तुमने अपने मुल्क
तरीक़ा
“अवाम को अस्लहे के बग़ैर लूटने के तरीक़े सीखें।” उस दफ़्तर के दरवाज़े के ऊपर ये लिखा था। मैं पिस्तौल दिखाकर लोगों को लूटते लूटते थक चुका था। दफ़्तर के अंदर घुसा तो काउंटर के पीछे एक शख़्स बैठा दिखा। “लोगों को लूटने का एक तरीक़ा सीखने की फ़ीस पाँच
बर्दाश्त
“हमारे मुआशरे में बर्दाश्त कम होती जा रही है।” मैंने सिर्फ़ इतना कहा था। “ग़द्दार! वतन के ख़िलाफ़ बात करते हो?” एक नौजवान ने मेरा गिरेबान पकड़ लिया। “वतन के ख़िलाफ़?” मैं हक्का बक्का रह गया। “ऐसे लोग ही मज़हब को बदनाम करते हैं।” एक बड़े मियां ने चपत लगाई। “मज़हब
मुसाफ़ा
कल सुबह मैंने एक रिश्वतखोर सरकारी अफ़्सर से मुसाफ़ा किया। उसके बाद मुझे अपने हाथ पर चिकनाहट महसूस हुई। मैंने देखा, मेरे हाथ पर कालिक लग गई थी। दोपहर को मैंने एक ज़मीर फ़रोश नामा निगार से मुसाफ़ा किया। उसके बाद मुझे अपने हाथ में जलन महसूस हुई। मैंने
प्रोफ़ेशनल
पेट की ख़ातिर मुझे क्या-क्या करना पड़ता है, पेट भरों को क्या पता! मैं रोज़ाना सैकड़ों अफ़राद के सामने ख़ाली पेट फ़न का मुज़ाहिरा करती हूँ। झुक झुक के सलाम करती हूँ, जिमनास्टिक दिखाती हूँ, उछलती क़ूदती हूँ, क़लाबाज़ियां खाती हूँ, हवा में तैरती हूँ, पानी
राशन
मैं अपनी चारों बिल्लियों की ख़ुराक लेने के लिए ख़ुद सुपर मार्केट जाती हूँ। आज कैट फ़ूड के कई पैकेट ख़रीदे। एक पैकेट सिर्फ़ नौ सौ रुपये का था। जेली वाले गोश्त के ढाई दर्जन टीन लिये। एक टीन की क़ीमत बस पछत्तर रुपये थी। मैं अपनी बिल्लियों के लिए हमेशा
तमाशाई
भड़कीली शोख़ रंग वाली शर्ट। बहुत मुख़्तसर-सा स्कर्ट। पैरों से उठकर स्कर्ट में गुम हो जानेवाले चुस्त मोज़े। ऊंची एड़ी के सैंडिल। कानों में चमकती बालियां, हाथों में खनकते कड़े। उसके हाथ किसी मशीन जैसी तेज़ी से चल रहे थे। कभी होंट रंगे जा रहे थे, कभी ग़ाज़ा
चराग़
अलादीन का ताल्लुक़ हमारे वतन चीन से था, ये तो आप जानते ही होंगे। अलादीन के बाद उसका चिराग़ माओज़े तुंग के हाथ लग गया था। सच कहूं, हमारी सारी तरक़्क़ी उसी चिराग़ के जिन्न की मरहून-ए-मिन्नत है। अच्छी ख़ासी तरक़्क़ी करने के बाद हमने वो चिराग़ कुछ दिनों
अशर्फ़ियां
मुझ जैसा अंधा फ़क़ीर तुम्हें क्या कहानी सुनाए? अच्छा सुनो! एक-बार कोई मेरा हाथ पकड़ के असैंबली के पास छोड़ आया। मैं रास्ते में बैठ गया। मुअज़्ज़िज़ अरकान क़रीब से गुज़रते रहे, अशर्फ़ियां फेंकते रहे। इन्सान का जैसा किरदार होता है, उसके मुताबिक़ दान करता
शॉपिंग
टॉम ने ग्लोबल सुपर मार्केट से एक मोटरवे ख़रीदी। पेमेंट के बाद सेल्ज़ मैन ने कहा, “मैं मोटरवे पैक करवा रहा हूँ। इतनी देर में आप हज़ारों गाड़ियां, दर्जनों फ़्यूल स्टेशन, सैकड़ों कारोबार और लाखों अफ़राद का रोज़गार उठा लें।” डक ने सुपर मार्केट से क्रिकेट टूर्नामेंट
शहरी
“तुम कभी मुस्कुराते क्यों नहीं?” उसने पूछा। “तुम हर वक़्त क्यों मुस्कुराती रहती हो?” मैंने सवाल किया। “क्यों न मुस्कुराऊँ?” मोनालिज़ा ने कहा, “आर्ट की दिलदादा हूँ, चारों तरफ़ आर्ट के नमूने सजे हैं। ख़ुश्बू की दीवानी हूँ। चहार सू खूश्बूएं फैली हैं। इशक़
राज़
कल एक कव्वा मेरी मुंडेर पर काएं काएं कर रहा था। मैं कमरे में लाखों करोड़ों के हिसाब मं मसरूफ़ था। काएं काएं से तवज्जो बट गई। मैं बाहर निकला और कहा, “सुना है कि कव्वा मुंडेर पर काएं काएं करे तो कोई मेहमान आता है। आज कौन आएगा?” कव्वे ने जवाब दिया,
अर्ज़ी
मेरे बस्ते से कहानीयों की किताबें निकल आई थीं। मास्टर अब्दुलशकूर ने असेंबली में पूरे स्कूल के सामने मुर्ग़ा बना दिया। सब किताबें मेरी पुश्त पर रख दीं। फिर वो बेद रसीद कर के भूल गए। सब अपने अपने क्लासरूम में चले गए। मुझे इजाज़त नहीं मिली। मुर्ग़ा
कमाई
कल में स्कूल पहुंचा तो बच्चों की छुट्टी में कुछ देर थी। मैंने ठेले से मकई ख़रीदी और पूछा, “ख़ान! एक दिन में कितना कमा लेते हो?” पंद्रह साला लड़के ने कहा, “दो सौ।” “बस?” “शाम को समोसे बेचता हूँ। ढाई सौ कमा लेता हूँ।” “अच्छा!” “रात को मूंगफली बेचता हूँ। मज़ीद
बिरयानी
मैं हैरान था कि मेरी फ़िल्म क्यों नहीं चली। स्टार कास्ट, आइटम नंबर, विज़ुअल इफेक्ट्स, मीडिया प्रोमोशन, मैंने सब कुछ किया लेकिन फ़िल्म फ्लॉप हो गई। मैंने ठाकुर से कहा, “बे-शक फ़िल्म की कहानी कमज़ोर थी लेकिन बाक़ी सब मसाले मौजूद थे। फिर प्रोजेक्ट क्यों
दक्खिन
ज़्यादा पैदल चलना पड़ता था तो मुझे रोना आजाता था। मोटरसाईकल ख़रीदी तो पैदल चलने की आदत ख़त्म हो गई। मोटरसाईकल बेचनी पड़ी तो पैदल चलना दुशवार हो गया। एक दिन अस्पताल जाना था। इत्तिफ़ाक़ से उस रूट की बस नहीं मिली। काफ़ी पैदल चल कर अस्पताल पहुंचा। टांगें अकड़
हक़ीक़त
“मेरी माँ अस्पताल में है।” मैंने बमुश्किल कहा। डाकू ने बे-यक़ीनी से मुझे देखा। “दो दिन पहले उन्हें हार्ट-अटैक हुआ था। इस वक़्त आई.सी.यू. में दाख़िल हैं।” उसने पिस्तौल नीचे कर लिया। “मैं ये पैसे न पहुंचा सका तो माँ का ईलाज नहीं हो सकेगा। वो मर जायेगी।” मेरी
अलादीन
वो चिराग़ मेरी अलमारी में पड़ा था। मैं सोचता रहा कि वो यहां कैसे आया लेकिन याद नहीं आया। फिर मैंने देखा, उस पर अरबी में कुछ लिखा है। “अफ़रक हज़ा अल मिस्बाह” मुझे अरबी आती है। इसका मतलब है, इस चिराग़ को रगड़ो। मैंने चिराग़ रगड़ा तो एक जिन्न नमूदार हुआ
तेहवार
“ये कैसे मालूम करें कि कोई क़ौम क़ानून पसंद है या नहीं?” मैंने समाजियात के उस्ताद प्रोफ़ेसर जॉनसन से पूछा। “उसका ट्रैफ़िक देखें, ट्रैफ़िक सिगनल का एहतिराम देखें।” प्रोफ़ेसर साहिब ने कहा। “और अमन-ओ-अमान की सूरत-ए-हाल का अंदाज़ा कैसे लगाऐं?” “अक़ल्लीयतों
ब्रीफ़
“बाबा! मैं सियास्तदान बनना चाहता हूँ।” मैंने वालिद से कहा। वो भी सियास्तदान हैं। असेंबली में जा चुके हैं। उन्होंने कहा, “पहले किसी ऐडवरटाइज़िंग एजेंसी में कुछ दिन काम करो।” मैंने उनके कहने पर जॉब करली। ऐड एजेंसी में क्लाइंट आते थे, हमें ब्रीफ़ करते
स्पैशलिस्ट
“सर में दर्द हो रहा है। कहीं ब्रेन टयूमर न हो गया हो।” मैंने तशवीश से कहा। “डाक्टर मुर्तज़ा से मिलो।” वाहिद ने मश्वरा दिया। मैं मसरूफ़ था। डाक्टर के पास न जा सका। कुछ दिन बाद कहा, “सीढ़ियाँ चढ़ कर सांस फूल गया। दिल की तकलीफ़ न हो गई हो।” “डाक्टर मुर्तज़ा
सख़ी
“इबोला वाइरस से हमारे बच्चों को ख़तरा है। हमने उसकी रोक-थाम के लिए पाँच लाख डालर अतिया किए हैं।” अरब पती क्लब के रुक्न ने कहा, मैं बहुत मुतास्सिर हुआ। “हम एडज़ पर तहक़ीक़ के लिए सालाना दो मिलियन डालर देते हैं।” “बहुत ख़ूब।” “मोटापे और ज़ियाब्तीस से
मिट्ठू
“क्या ये तोता बोलता है?” मैंने पूछा। “जी हाँ।” जवाब मिला। मैं इस ख़ूबसूरत तोते को घर ले आया, उसका पुराना पिंजरा फेंक दिया, उसे एक कुशादा पिंजरे में मुंतक़िल कर दिया, तोता पूरा दिन कुछ नहीं बोला। अगले दिन मैंने पिंजरे में एक छोटा सा झूला नस्ब कर
बेश क़दर
मेरा एक दोस्त तरह तरह के लोटे जमा करता है। उसके हाँ दर्जनों लोटे देखकर सब हैरान रह जाते हैं। कोई लोटा सफ़ेद है, कोई स्याह, कोई पीतल का है, कोई प्लास्टिक का, किसी पर रंगीन नक़्श बने हुए हैं, किसी पर हसीन सूरत। एक दिन मैंने उसके ड्राइंगरूम में मिट्टी
तारीख़
साइंसदाँ मुस्तक़बिल बनाते हैं लेकिन हम तारीख़ लिख रहे हैं। हम पर इन्किशाफ़ हुआ है कि तारीख़ की बेशतर किताबें ग़लत हैं इसलिए उन्हें दुबारा लिखा जा रहा है। ऐसा यूं हुआ कि हमने रोशनी से ज़्यादा रफ़्तार वाला राकेट बना लिया। कई हज़ार नूरी साल के फ़ासले तक
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