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मुस्तनसिर हुसैन तारड़ की कहानियाँ
प्रेम
पत्र के शैली में लिखी गई यह कहानी एक अलमिया कहानी है। प्रेम एक उच्च शिक्षा प्राप्त अमीर घराने की सिख लड़की है जो डलहौज़ी से लाहौर अपने क़लमी दोस्त मुस्तनसिर को पत्र लिखती है। उन पत्रों में सामाजिक समस्याएं, सामाजिक अत्याचार, प्रेम की मनोवैज्ञानिक उलझनों और पेचीदगियों का भलीभांति चित्रण होता है। उसके माँ-बाप सिख बिरादरी से बाहर शादी नहीं कर सकते इसीलिए वो अपने क़लमी दोस्त मुस्तनसिर के लिए नर्म गोशा रखने के बावजूद पत्रों में अपने समान धर्मी लड़के से मुहब्बत ज़ाहिर करती है। उसकी मौत संयोग से स्पेन में होती है जो मुस्तनसिर का पसंदीदा देश है।
सियाह आँख में तस्वीर
लारनज़ो की लाश कई रोज़ तक मुक़द्दस पहाड़ी की चोटी पर गड़ी सलीब से झूलती रही। उन्होंने उसे सलीब पर मेख़ों से गाड़ने की बजाय एक रस्सा लटका कर फांसी दी थी। मेख़ें महंगी होती हैं। एक मर्तबा गाड़ी जाएं तो आसानी से उखड़ती नहीं। ज़ाए हो जाती हैं। रस्सा सस्ता होता
आधी रात का सूरज
नये समाज में औलाद की माँ-बाप के प्रति संवेदनहीनता और अपने इतिहास व सभ्यता से विमुखता इस कहानी का विषय है। फ़्रांसीसी रेने क्लॉड एक शिक्षाविद है जिसे रिटायरमेंट के बाद उसकी इकलौती बेटी ने ओल्ड पीपल होम में डाल दिया था। रेने के अनुसार वो इस मुशतर्का ताबूत में बीस बरस तक रहा और फिर वो दुनिया की सैर के लिए निकल पड़ा। वो लाहौर आता है और यहाँ की ऐतिहासिक इमारतों में दिलचस्पी लेता है जबकि आम शहरी को उससे कोई लगाव नहीं होता। रेने क्लॉड सैर के दौरान नेपाल में मर जाता है और उसकी वसीयत के अनुसार उसे वहीं दफ़न कर दिया जाता है और अख़बार में इश्तिहारात के कालम के पास एक मुख़्तसर सी ख़बर उसके मरने की छप जाती है।
गैस चैंबर
"कर्फ़्यू के दौरान पैदा होने वाले बच्चे की ज़िंदगी और मौत की कश्मकश को इस कहानी में प्रस्तुत किया गया है। एक नवजात जिसको ज़िंदगी के लिए सिर्फ़ हवा, दूध और नींद की ज़रूरत है, वो कर्फ़्यू की वजह से उन तीनों चीज़ों से वंचित है। आँसू गैस की वजह से वो आँखें नहीं खोल पा रहा है, कर्फ़्यू की वजह से दूध वाला नहीं आ रहा है और वो डिब्बे के दूध पर गुज़ारा कर रहा है। धमाकों के शोर की वजह से वो सो नहीं पा रहा है और प्रदुषण के कारण उसको साफ़ सुथरी हवा उपलब्ध नहीं, जैसे यह दुनिया उसके लिए एक गैस चैंबर बन गई है।"
दरख़्त
"पेड़ को प्रतीक बना कर लिखी गई इस कहानी में लेखक ने ये बताने की कोशिश की है कि दुनिया में जो लाभदायक चीज़ें हैं उनको तबाह-ओ-बर्बाद करने की सारी कोशिशें नाकाम साबित होती हैं। उल्लेखित कहानी में सफेदे के पेड़ को एक लकड़हारा काटने की कोशिश करता है लेकिन अंत में वो थक-हार कर कहीं चला जाता है और पेड़ फिर नए सिरे से ऊपर बढ़ने लगता है। विनाशकारी हमेशा निर्माण का नाम लेकर विनाश करते हैं। जब आम यात्री लकड़हारे को पेड़ काटने से रोकते हैं तो वो कहता है कि हम इस पेड़ को काट कर नया पेड़ लगाएँगे। मुसाफ़िर जवाब देते हैं कि लकड़हारे तो सिर्फ पेड़ काटते हैं, लगाते नहीं।"
बादशाह
रूपक शैली में हाकिम-ओ-मह्कूम की कश्मकश बयान की गई है। ज़मान एक ग़रीब पाकिस्तानी है जो अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए विलायत जाता है लेकिन फिर पलट कर वतन की तरफ़ नहीं देखता। वो एक सैलानी के रूप में हिस्पानिया जाता है जहाँ समुंद्र के किनारे पर एक बदहवास बूढ़ा नज़र आता है जो ख़ुद को स्काटलैंड का बादशाह कहता है। मछलियों की बदबू से वो मक्खीयों को मारता है और कहता है कि इस ज़मीन पर मक्खी मुक्त व्यवस्था स्थापित करना ही उसका मिशन है। एक दिन वो बूढ़ा अपने ख़ेमे में मुर्दा पाया जाता है और उसकी पालतू बिल्लियाँ उसका गोश्त खा चुकी होती हैं। ख़ुशबू, बदबू और व्हेल के अर्थपूर्ण रूपक इस कहानी के कई आयाम रोशन करते हैं।
ज़ात का क़त्ल
अन्तोनियो हिस्पानिया का नौजवान बुल फाइटर है जो अपनी प्रतिभा और खोज से बुल फ़ाइटिंग में कामयाब होता है लेकिन रिटायर्ड बुल फाइटर और इस्पाना अख़बार का कालम लेखक पाद्रो अपने कालम में सिर्फ़ इसलिए उसकी आलोचना करता है कि अन्तोनियो ने बुल फ़ाइटिंग में पारंपरिक सिद्धांतों का पालन न करके अपनी ज़ात को प्रकट किया और नए दांव-पेच से बुल को पराजित किया था। कालम का नतीजा ये हुआ कि अन्तोनियो से सारे अनुबंध वापस ले लिए गए। सालाना जश्न के अवसर पर जब उसको संयोग से बुल फ़ाइटिंग का निमंत्रण मिलता है तो वो पारंपरिक ढंग से बुल को पराजित करता है जिससे पाद्रो भी ख़ुश हो जाता है लेकिन मुक़ाबले के तुरंत बाद अन्तोनियो बुल को अपने ऊपर आक्रमण करने का अवसर देता है और उसकी मौत हो जाती है।
ग़ुलाम दीन
कभी कभी इंसान का जीवन इतना कठिन हो जाता है कि वो मात्र ज़िंदा रहने को ही कामयाबी समझने पर मजबूर हो जाता है। इस कहानी में लेखक ने एलेक्ज़ेंडर सोल्ज़नित्सन के एक उपन्यास के एक दिन के एक पात्र आयुन के समान एक पात्र की रचना की है। आयुन की क़ैदख़ाने की ज़िंदगी और ग़ुलाम दीन की ज़िंदगी में एक साथ कई समानताएं पाई जाती हैं। ज़िंदगी के बिखराव, अभावों, विवशताओं और ख़ुशियों के मुआमले में लगभग दोनों पात्र समान हैं। आयुन जिस दिन खाने में दो प्याले पाता है, तंबाकू ख़रीद लेता है, बीमार नहीं होता और थोड़े पैसे कमा लेता है, उस दिन वो निश्चिंत हो कर सोता है। उसी तरह इस कहानी का पात्र भी जिस दिन खाने के बाद चाय पा जाता है, घर जाने के लिए नौ के बजाय आठ बजे वाली बस मिल जाती है और बीवी से झगड़ा नहीं होता, उस दिन को वो मुकम्मल दिन समझता है और निश्चिंत हो कर सो जाता है।
बाबा बग्लोस
सत्ताधारियों की दोहरी नीतियों और समाज की उदासीनता को इस कहानी का विषय बनाया गया है। बाबा बगलूस बंदी-गृह में एक ऐसा बूढ़ा क़ैदी है जो न जाने कब से और किस जुर्म में क़ैद है। उसको रिहा इसलिए नहीं किया जा सकता क्योंकि उसकी फ़ाईल ग़ायब है। क़ैदख़ाने के कर्मचारियों की ओर से उस पर किसी तरह की पाबंदी नहीं है। अलबत्ता वो कभी-कभी ख़ुद बाहर की दुनिया देखने की इच्छा प्रकट करता है, लेकिन बाहर रहना पसंद नहीं करता। एक योजना के अधीन उसको फ़रार होने के लिए उकसाया भी गया लेकिन वो घूम फिर कर क़ैदख़ाने वापस आ गया। योजनानुसार शहर देखने एक दिन जब वह बाहर जाता है तो वहाँ एक मैदान में फाँसी का दृश्य देखता है। अवाम एक तमाशे की तरह उससे आनंदित हो रहे होते हैं। बाबा बगलूस सिपाहियों से कहता है कि वो अब क़ैदख़ाने नहीं जाएगा क्योंकि अंदर बाहर का मौसम एक जैसा हो चुका है।
डाइरी 83 ई
पाकिस्तान विभाजन के बाद आर्थिक असमानता के नतीजे में पैदा होने वाली सूरते हाल का चित्रण किया गया है। एक फ़क़ीर जो बंगाली भाषा में आवाज़ लगाता है वो केवल इसलिए भूखा और वंचित रह जाता है कि बंगाली भाषा समझने वाला कोई नहीं होता। एक दिन रावी के दोस्त ख़्वाजा साहब उसकी भाषा समझ कर उसे पास बुलाते हैं, देर तक बात करते हैं और फिर उसे अठन्नी देते हैं। रूहांसी आवाज़ में कहते हैं कि यह संयुक्त पाकिस्तान की आख़िरी निशानी है, इसके बाद बंगालियों की बुराई करते हैं। उस दिन के बाद जब भी वो फ़क़ीर आता है और आवाज़ लगाता है तो रावी को ऐसा महसूस होता है कि उस फ़क़ीर के पीछे एक और फ़क़ीर है जो सदा लगा रहा है।
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