नामी अंसारी के शेर
अपनी पर्वाज़ को मैं सम्त भी ख़ुद ही दूँगा
तू मुझे अपनी रिवायात का पाबंद न कर
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घर छोड़ा बे-सम्त हुए हैरानी में
कैसे कैसे दुख झेले नादानी में
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