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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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नवीन सी. चतुर्वेदी

1968 | मुंबई, भारत

नवीन सी. चतुर्वेदी के शेर

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भुला दिया है जो तू ने तो कुछ मलाल नहीं

कई दिनों से मुझे भी तिरा ख़याल नहीं

मिरा साया मिरे बस में नहीं है

मगर दुनिया पे दावा कर रहा हूँ

नए सफ़र का हर इक मोड़ भी नया था मगर

हर एक मोड़ पे कोई सदाएँ देता था

बैठे-बैठे का सफ़र सिर्फ़ है ख़्वाबों का फ़ुतूर

जिस्म दरवाज़े तक आए तो गली तक पहुँचे

परसों मैं बाज़ार गया था दर्पन लेने की ख़ातिर

क्या बोलूँ दूकान पे ही मैं शर्म के मारे गड़ बैठा

अब हवाओं के दाम खुलने हैं

ख़ुशबुओं का तो हो चुका सौदा

हम तो उस के ज़ेहन की उर्यानियों पर मर मिटे

दाद अगरचे दे रहे हैं जिस्म और पोशाक पर

किस को फ़ुर्सत है जो हर्फ़ों की हरारत समझाए

बात आसानी तक आए तो सभी तक पहुँचे

प्यास को प्यार करना था केवल

एक अक्षर बदल पाए हम

बग़ैर पूछे मिरे सर में भर दिया मज़हब

मैं रोकता भी तो कैसे कि मैं तो बच्चा था

कुछ भँवर यूँ उचट पड़े थे ज्यूँ

ख़ुद-कुशी पर हो कोई आमादा

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