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रहमान मुज़्निब की कहानियाँ
पुराना शहर
पुराने शहर की फ़सीलें मुनहदिम हो चुकी हैं। शहर ज़रूर सलामत है। इस तरह नूर मुहल्ला और नूर मस्जिद ब-क़ैद-ए-हयात हैं। उन्हें लोग जानते हैं। बेगम नूर-ए-हयात को भूल गए हैं। उसकी तो क़ब्र का निशान भी नहीं रहा। उसी ने ये मुहल्ला बसाया और छोटी सी इबादत गाह
अफ़लास की आग़ोश
एक ही रात में तीन क़त्ल! शह्र में सनसनी फैल गई। एक आदमी ख़बर पढ़ते-पढ़ते ग़श खा गया। कोठियाँ, कोठी ख़ाने, खिड़कियाँ, बालकनियाँ, बाम-ओ-दर एक साथ बोलने लगे। मुफ़्त-ख़ोरे अख़बार ख़रीद कर पढ़ने वालों पर टूट पड़े और घर-घर अख़बार ले गए। कुछ पलट कर न आए और
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