रईस अमरोहवी के शेर
ख़ामोश ज़िंदगी जो बसर कर रहे हैं हम
गहरे समुंदरों में सफ़र कर रहे हैं हम
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सिर्फ़ तारीख़ की रफ़्तार बदल जाएगी
नई तारीख़ के वारिस यही इंसाँ होंगे
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हम अपनी ज़िंदगी तो बसर कर चुके 'रईस'
ये किस की ज़ीस्त है जो बसर कर रहे हैं हम
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पहले ये शुक्र कि हम हद्द-ए-अदब से न बढ़े
अब ये शिकवा कि शराफ़त ने कहीं का न रखा
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किस ने देखे हैं तिरी रूह के रिसते हुए ज़ख़्म
कौन उतरा है तिरे क़ल्ब की गहराई में
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अभी से शिकवा-ए-पस्त-ओ-बुलंद हम-सफ़रो
अभी तो राह बहुत साफ़ है अभी क्या है
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टैग : सफ़र
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टहनी पे ख़मोश इक परिंदा
माज़ी के उलट रहा है दफ़्तर
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टैग : माज़ी
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पहले भी ख़राब थी ये दुनिया
अब और ख़राब हो गई है
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अब दिल की ये शक्ल हो गई है
जैसे कोई चीज़ खो गई है
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सदियों तक एहतिमाम-ए-शब-ए-हिज्र में रहे
सदियों से इंतिज़ार-ए-सहर कर रहे हैं हम
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टैग : इंतिज़ार
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दिल कई रोज़ से धड़कता है
है किसी हादसे की तय्यारी
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हम अपने हाल-ए-परेशाँ पे बारहा रोए
और उस के ब'अद हँसी हम को बारहा आई
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ये कर्बला है नज़्र-ए-बला हम हुए कि तुम
नामूस-ए-क़ाफ़िला पे फ़िदा हम हुए कि तुम
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दिल से मत सरसरी गुज़र कि 'रईस'
ये ज़मीं आसमाँ से आती है
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चंद बेनाम-ओ-निशाँ क़ब्रों का
मैं अज़ा-दार हूँ या है मिरा दिल
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