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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Rajab Ali Beg Suroor's Photo'

रजब अली बेग सुरूर

1786 - 1869 | लखनऊ, भारत

उन्नीसवीं सदी के प्रमुख कथाकार/अपनी रचना ‘फ़साना-ए-अजाएब’ के लिए प्रसिद्ध

उन्नीसवीं सदी के प्रमुख कथाकार/अपनी रचना ‘फ़साना-ए-अजाएब’ के लिए प्रसिद्ध

रजब अली बेग सुरूर के शेर

अब है दुआ ये अपनी हर शाम हर सहर को

या वो बदन से लिपटे या जान तन से निकले

नादान कह रहे हैं जिसे आफ़्ताब-ए-हश्र

ज़र्रा है उस के रू-ए-दरख़्शाँ के सामने

लाज़िम है सोज़-ए-इश्क़ का शो'ला अयाँ हो

जल बुझिए इस तरह से कि मुतलक़ धुआँ हो

क्या यही थी शर्त कुछ इंसाफ़ की तुंद-ख़ू

जो भला हो आप से उस से बुराई कीजिए

दम-ए-तकफ़ीन भी गर यार आवे

तो निकलें हाथ बाहर ये कफ़न से

पहुँचा गोश तक इक तेरे हैहात

हज़ारों नाला निकला इस दहन से

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