- पुस्तक सूची 187535
-
-
पुस्तकें विषयानुसार
-
गतिविधियाँ42
बाल-साहित्य2051
नाटक / ड्रामा1015 एजुकेशन / शिक्षण370 लेख एवं परिचय1463 कि़स्सा / दास्तान1643 स्वास्थ्य101 इतिहास3494हास्य-व्यंग732 पत्रकारिता215 भाषा एवं साहित्य1928
पत्र807 जीवन शैली23 औषधि1009 आंदोलन299 नॉवेल / उपन्यास5017 राजनीतिक368 धर्म-शास्त्र4710 शोध एवं समीक्षा7233अफ़साना3029 स्केच / ख़ाका287 सामाजिक मुद्दे117 सूफ़ीवाद / रहस्यवाद2243पाठ्य पुस्तक570 अनुवाद4507महिलाओं की रचनाएँ6354-
पुस्तकें विषयानुसार
- बैत-बाज़ी14
- अनुक्रमणिका / सूची5
- अशआर69
- दीवान1483
- दोहा51
- महा-काव्य106
- व्याख्या206
- गीत62
- ग़ज़ल1288
- हाइकु12
- हम्द52
- हास्य-व्यंग37
- संकलन1633
- कह-मुकरनी7
- कुल्लियात708
- माहिया19
- काव्य संग्रह5217
- मर्सिया395
- मसनवी868
- मुसद्दस58
- नात590
- नज़्म1294
- अन्य77
- पहेली16
- क़सीदा194
- क़व्वाली18
- क़ित'अ70
- रुबाई304
- मुख़म्मस16
- रेख़्ती13
- शेष-रचनाएं27
- सलाम35
- सेहरा10
- शहर आशोब, हज्व, ज़टल नामा20
- तारीख-गोई30
- अनुवाद74
- वासोख़्त27
रशीद जहाँ की कहानियाँ
दिल्ली की सैर
यह फ़रीदाबाद से दिल्ली की सैर को आई एक औरत के साथ घटी घटनाओं का क़िस्सा है। एक औरत अपने शौहर के साथ दिल्ली की सैर के लिए आती है। दिल्ली में उसके साथ जो घटनाएं होती हैं वापस जाकर उन्हें वह अपनी सहेलियों को सुनाती है। उसके साथ घटी सभी घटनाएं इतनी दिलचस्प होती हैं कि उसकी सहेली जब भी उसके घर जमा होती हैं, हर बार उससे दिल्ली की सैर का क़िस्सा सुनाने के लिए कहती हैं।
वोह
यह एक जिस्म बेचने वाली औरत की कहानी है, वक़्त के साथ जिसकी सारी चमक-दमक ख़त्म हो गई है। वह कोढ़ की मरीज़ है जिसकी वजह से लोग अब उससे कतराते और नफ़रत करते हैं। कोई भी उससे बात तक करना पसंद नहीं करता।
सास और बहू
यह एक ऐसी घरेलु औरत की कहानी है, जो अपनी सास की हर वक़्त शिकायतें करते रहने की आदत से परेशान है। वह अपनी तरफ़ से सास को ख़ुश रखने के लिए हर मुमकिन कोशिश करती है। मगर सास उसके हर काम में कोई न कोई कमी निकाल ही देती है। वह कई बार अपने बेटे से दूसरी शादी करने के लिए भी कहती है लेकिन बेटा अपनी माँ की तजवीज़ को हंस कर टाल देता है।
आसिफ़ जहाँ की बहू
यह एक ऐसे परिवार की कहानी है जहाँ लड़की होने की दुआ माँगी जा रही है। आसिफ़ जहां एक अमीर कलेक्टर की बीवी है। उसके यहाँ नौ औलादें हुई थीं, पर उनमें से बस एक ही जी सकी थी। वह चाहती है कि उसके लिए अपनी ननद की बेटी माँग ले। मगर ननद जब भी उम्मीद से होती है तो हर बार लड़का ही होता है। पर उस बार ख़ुदा ने आसिफ़ जहां की सुन ली और उसकी ननद के यहाँ बेटी पैदा हुई।
ग़रीबों का भगवान
कहानी एक ऐसी विधवा औरत की है, जो अपने बड़े बेटे की मौत पर पागल हो जाती है। उसकी बीमारी में वह हर किसी से मदद माँगती है मगर कोई भी उसकी मदद नहीं करता। वह मंदिर जाती है तो उसे वहाँ से निकाल दिया जाता है, क्योंकि वह अमीरों का मंदिर होता है। वहाँ से निकलकर वह ग़रीबों के भगवान की तलाश में भटकने लगती है। मगर कोई भी उसे ग़रीबों के भगवान का पता नहीं देता। आख़िर में एक डॉक्टर उसे बताता है इस दुनिया में कौन ग़रीबों का भगवान है।
इफ़्तार
इस कहानी में रमज़ान के महीने में होने वाले इफ़्तार के ज़रिए मुस्लिम समाज के वर्ग-विभाजन को दिखाया गया है। एक तरफ़ भीख माँगने वाले हैं जो मरने से पहले पेट की आग की वजह से जहन्नुम जैसी ज़िंदगी जी रहे हैं, दूसरी तरफ़ अच्छी ज़िंदगी जीने वाले हैं जिनके पास हर तरह की सुविधाएं हैं और वह दुनिया में जन्नत जैसा सुख भोग रहे हैं।
चोर
एक डॉक्टर की कहानी जो एक ऐसे शख़्स के बच्चे का इलाज करती है जिसने दोपहर ही उसके घर में चोरी की है। कई बार वह सोचती है कि वह पुलिस को बुलाकर उसे गिरफ़्तार करा दे। उसका फ़ौजी भाई भी उसी वक़्त उसके क्लीनिक में चला आया था। मगर उसने यह सोचकर उस चोर के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की कि समाज में हर जगह तो चोर हैं। आप किस-किस के ख़िलाफ़ कार्रवाई कर सकते हैं।
शीला
जहाँ मोटी, गोरी, मंझोली शीला में और कमज़ोरियाँ थीं वहाँ उसकी ख़ुश-मिज़ाजी भी शामिल थी। “हाँ” के सिवा दूसरा लफ़्ज़ तो वो जानती ही नहीं थी और “नहीं” का इस्ते’माल उसने शायद कभी किया हो। किसी के हाँ डिनर पर अगर कोई मेहमान आख़िरी वक़्त पर इन्कार कर दे तो जगह
मेरा एक सफ़र
यह कहानी भारतीय समाज में धर्म और जातिगत भेदभाव को उजागर करती है। वह रेल के तीसरे दर्जे में सफ़र कर रही थी जब बातों ही बातों में डिब्बे में बैठी हिंदू और मुसलमान औरतों के बीच धर्म और छूआछूत को लेकर झगड़ा शुरू हो जाता है। काफ़ी देर तक वह यूं ही बैठी हुई झगड़े को देखती रहती है। मगर जब लड़ती हुई औरतें उसे भी लपेटे में लेने की कोशिश करती हैं तो वह उठकर एक ऐसी धमकी देती है कि सभी औरतें आपस में एक-दूसरे से माफ़ी माँगना शुरू कर देती हैं।
मुजरिम कौन
एक ऐसे जज की कहानी, जो किसी और की बीवी से मोहब्बत कर बैठता है और उसे उसके शौहर से अलग कर देता है। जब उसकी अदालत में ऐसा ही एक केस आता है तो वह आशिक़ को तीन साल की सज़ा सुना देता है। इस पर सज़ा भुगत रहे आशिक़ की माशूक़ा आग लगाकर ख़ुदकुशी कर लेती है। एक रोज़ क्लब में बैठे हुए जज के कुछ दोस्त इसी मामले पर बहस कर रहे होते हैं और पूछते हैं कि असली मुजरिम कौन है?
join rekhta family!
Jashn-e-Rekhta 10th Edition | 5-6-7 December Get Tickets Here
-
गतिविधियाँ42
बाल-साहित्य2051
-
