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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Riyaz Latif's Photo'

रियाज़ लतीफ़

1964 | पूने, भारत

प्रमुख उत्तर-आधुनिक शायर/गुजरात में प्रवास

प्रमुख उत्तर-आधुनिक शायर/गुजरात में प्रवास

रियाज़ लतीफ़ के शेर

ज़मीन फैल गई है हमारी रूह तलक

जहाँ का शोर अब अंदर सुनाई देता है

यहीं पर ख़त्म होनी चाहिए थी एक दुनिया

यहीं से बात का आग़ाज़ होना चाहिए था

किसी ने हम को अता नहीं की हमारी गर्दिश है अपनी गर्दिश

ख़ुद अपनी मर्ज़ी से इस जहाँ की रगों में गिर्दाब हम हुए हैं

ख़ुदा की ख़मोशी में शायद हो उस का वजूद

ज़माना हुआ नाम अपना पुकारे हुए

कभी तो मंज़रों के इस तिलिस्म से उभर सकूँ

खड़ा हूँ दिल की सतह पर ख़ुद अपने इंतिज़ार में

बस लहू की बूँद थी एहसास में

फिर उगाया दश्त ने इक सर नया

बाद में रखे सराबों के दयारों में क़दम

पहले वो साँस की सरहद पे तो कर देखे

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