- पुस्तक सूची 184867
-
-
पुस्तकें विषयानुसार
-
बाल-साहित्य1921
औषधि878 आंदोलन290 नॉवेल / उपन्यास4311 -
पुस्तकें विषयानुसार
- बैत-बाज़ी11
- अनुक्रमणिका / सूची5
- अशआर64
- दीवान1432
- दोहा64
- महा-काव्य98
- व्याख्या182
- गीत81
- ग़ज़ल1097
- हाइकु12
- हम्द44
- हास्य-व्यंग36
- संकलन1540
- कह-मुकरनी6
- कुल्लियात672
- माहिया19
- काव्य संग्रह4837
- मर्सिया374
- मसनवी815
- मुसद्दस57
- नात535
- नज़्म1198
- अन्य68
- पहेली16
- क़सीदा179
- क़व्वाली19
- क़ित'अ60
- रुबाई290
- मुख़म्मस17
- रेख़्ती12
- शेष-रचनाएं27
- सलाम33
- सेहरा9
- शहर आशोब, हज्व, ज़टल नामा13
- तारीख-गोई28
- अनुवाद73
- वासोख़्त26
सलाम बिन रज़्जाक़ की कहानियाँ
एकलव्य का अंगूठा
इस कहानी का ताना-बाना एक पौराणिक कथा को आधार बनाकर आधुनिक संदर्भों में बुना गया है। कहानी और उसके पात्र वही हैं, बस उनकी स्थिति और शिक्षा का माध्यम बदल गया है। एकलव्य दलित समाज का एक होनहार छात्र है। मेडिकल डिग्री के लिए वह सनातन कॉलेज में दाख़िला ले लेता है। कॉलेज में उसका परफॉर्मेंस सबसे अच्छा होता है, और जब वह अच्छे अंकों से डिग्री प्राप्त कर लेता है तो गुरु द्रोणाचार्य उससे दक्षिणा मांगते हैं। दक्षिणा में वह उससे पहले की तरह ही दाएँ हाथ का अंगूठा मांगते हैं। एकलव्य अंगूठा काटकर दे देता है। परन्तु इस बार अपना अंगूठा देकर वह मात नहीं खाता, क्योंकि यह आधुनिक एकलव्य दाएँ हाथ से नहीं, बाएँ हाथ से कलम पकड़ता है।
ज़िन्दगी अफ़्साना नहीं
यह कहानी एक धार्मिक मुस्लिम परिवार में रहने वाली औरतों की भयावह स्थिति को बयान करती है। फ़ैक्टरी की नौकरी चली जाने पर जमालुद्दीन मस्जिद में इमाम हो जाता है्। धर्म-कर्म से जुड़ने के बाद वह घर और उसकी हालत को एक तरह से भूल ही जाता है। उसकी बीवी जैसे-तैसे करके घर चलाती रहती है। माँ की मदद करने के इरादे से बड़ी बेटी जमीला भी मैट्रिक के बाद एक स्कूल में नौकरी करने लगती है। वहाँ उसकी मुलाक़ात असलम से होती है, जिससे वह चाहकर भी शादी नहीं कर पाती और घर के झमेलों में ही फँसी हुई ज़िंदगी गुज़ार देती है।
दहशत
दंगों के दौरान कर्फ़्यू में फँसे एक ऐसे साधारण आदमी की कहानी, जो दहशत के कारण बोल तक नहीं पाता। वह आदमी डरते हुए किसी तरह अपने मोहल्ले तक पहुँचता है। वहाँ उसे अँधेरे में एक साया लहराता दिखाई देता है। उस साये से ख़ुद को बचाने के लिए वह उसे अपना सब कुछ देने के लिए तैयार हो जाता है। तभी साया को अपनी तरफ़ बढ़ता देख डर से वह आँखें बंद कर लेता है। अगले ही क्षण उसे महसूस होता है कि साया उसके क़दमों में पड़ा उससे रहम की भीख माँग रहा है।
बाहम
कहानी एक ऐसी गर्भवती की स्थिति को बयान करती है जो बाबरी विध्वंस के दौरान बच्चे को जन्म देने वाली है। एक दिन अचानक उसे गोश्त खाने का मन करता है और वह कसाई की दुकान पर गोश्त लेने जाती है। वहाँ वह एक बकरे को ज़िब्ह होते हुए देखती है। गोश्त लेकर घर आते हुए उसके हाथ से गोश्त की थैली को एक कुतिया छीन कर भाग जाती है। वह घर आती है और बासी रोटी खाकर सो जाती है। नींद में वह एक डरावना सपना देखती है, जिसके कारण उसे समय से पहले ही प्रसव पीड़ा होने लगती है। उसका पति उसे अस्पताल ले जाता है, जहाँ वह दो मुर्दा बच्चों को जन्म देती है।
अंजाम-कार
यह एक ऐसे व्यक्ति की बेबसी की दास्तान है, जो मुंबई की एक चाली में रहता है। उसे और उसकी पत्नी को वहाँ का माहौल बिल्कुल पसंद नहीं। एक दिन उनकी चाली में कच्ची दारू की धंधा करने वाले शामू दादा से उसका झगड़ा हो जाता है, जिसकी शिकायत वह पुलिस में करता है, मगर पुलिस यह कह कर शिकायत दर्ज करने से इंकार कर देती है कि बदमाशों की शिकायत करने से कोई फ़ायदा नहीं, वे लोग तो ज़मानत पर छूट जाएंगे, फिर बाद में उसे ही परेशानी होगी। पुलिस की यह बातें सुनकर वह व्यक्ति इतना बेबस हो जाता है कि अपनी इस बेबसी को दूर करने के लिए शामू की ही दुकान पर शराब पीने चला जाता है।
मसीहा
यह एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो नियम और क़ानून का बहुत सम्मान करता है और उन्हें मानता भी है। वो यह भी अपेक्षा करता है कि दूसरे लोग भी उन नियमों का उसी तरह पालन करें। इसके लिए वह जहाँ-जहाँ मुम्किन होता लोगों को नियम का उल्लंघन करने पर टोकता और उनका पालन करने के लिए उन्हें प्रेरित करता। एक दिन सभी लोग मिलकर पुलिस में उसकी शिकायत कर देते हैं और पुलिस द्वारा शहर की शांति भंग करने के आरोप में उसे गिरफ़्तार कर लिया जाता है।
गीत
यह एक बाल मनोकथा है। एक बाप अपने बेटे को एक ऐसे दूर देश की कहानी सुनाता है, जहाँ लोगों के साथ एक परी रहती थी। वहाँ के लोग ख़ुशहाल और एक दूसरे की मदद करने वाले थे। परी उनके साथ रहती और उन्हें गीत सुनाया करती। धीरे-धीरे लोगों का व्यवहार बदलने लगा और वह परी को भूल गए। एक दिन लोग एक-दूसरे को क़त्ल करने के इरादे से जब अपने घरों से निकले तो दुःखी परी ने उन्हें एक ऐसा गीत सुनाया, जिसे उससे पहले उन्होंने कभी नहीं सुना था। उस गीत का उन पर ऐसा असर हुआ कि लोग फिर पहले की तरह ही प्यार-मोहब्बत से रहने लगे।
आदमी और आदमी
मानवीय स्वभाव और व्यवहार पर आधारित कहानी, जिसमें एक साथ दो घटनाओं को दिखाया गया है। पहली घटना में रेलवे ट्रैक पर फँसे बच्चे को बचाने के लिए एक नौजवान अपनी जान की बाज़ी लगा देता है। वहीं दूसरी घटना में दंगों के दौरान एक नौजवान अपने धर्म की श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए न केवल एक औरत के शरीर को गोलियों से छलनी कर देता है बल्कि उसके छोटे बच्चे को भी मौत के घाट उतार देता है।
बटवारा
ऐसे दो भाइयों की कहानी, जो अपनी माँ के सामने तो बहुत प्यार-मोहब्बत से रहते हैं, पर बाहरी दुनिया में एक-दूसरे के जानी-दुश्मन हैं। उनकी माँ को जब उनके इस व्यवहार के बारे में पता चलता है तो वह उन्हें समझाने की कोशिश करती है। पर दोनों में से कोई भी माँ की बात सुनने से मना कर देता है। इस सदमे में माँ की जान चली जाती है। अपनी दुश्मनी के कारण वे माँ की लाश को भी दो टुकड़े में बाँट लेते हैं और अपनी इच्छानुसार उसका क्रिया-कर्म करते हैं।
बड़े क़द का आदमी
यह ऐसे दो दोस्तों की कहानी है, जो एक दिन सड़क पर चलते हुए अचानक एक-दूसरे से टकरा जाते हैं। एक उसे नज़र-अंदाज़़ करना चाहता है, दूसरा दोस्त उसे पहचान लेता है और उसके क़रीब चला आता है। दोनों मिलकर काम और बीत रही ज़िंदगी के बारे में बातें करते हैं। दूसरा दोस्त उससे उसके बेटे के बारे में पूछता है, जिससे वह अक्सर ढेरों तोहफ़ों के साथ मिलने उसके घर जाया करता था। मगर जब से उसकी आर्थिक स्थिति ख़राब हुई है, वह उसके बेटे को मिलने नहीं जा पाया था। वह उसे बताता है कि उसका बेटा भी उसे याद करता है। इस पर वह अपने दोस्त से सौ रूपये उधार लेता है और उसके बेटे के लिए तोहफ़े खरीद कर देता है।
आख़िरी कंगूरा
यह कहानी देश में होने वाले किसी भी बम ब्लास्ट के बाद पुलिस और ख़ुफ़िया तंत्र द्वारा मुस्लिम समुदाय को प्रताड़ित किए जाने के दृश्य को बयान करती है। मोहम्मद अली प्रॉपर्टी डीलर है। वह अपने ऑफ़िस में बैठा है कि कुछ पुलिस वाले उसे उठाकर ले जाते हैं। पता चलता है कि उन्होंने उसे शहर में हुए बम ब्लास्ट के संदेह में उठाया है। मोहम्मद अली अपने निर्दोष होने के बारे में हर तरह की सफ़ाई पेश करता है और कहता है कि वह व्यक्ति उसकी बे-गुनाही की गवाही देगा जिसे उसने बम ब्लास्ट के समय बचाया था। उस व्यक्ति से मिलने अस्पताल जाने पर पता चलता है कि वह व्यक्ति तो कोमा में चला गया है और पता नहीं कि उसे कब होश आएगा।
join rekhta family!
-
बाल-साहित्य1921
-