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पाकिस्तान के चर्चित शायर। अपनी ग़ज़ल ' मैं ख़याल हूँ किसी और का ' के लिए मशहूर।

पाकिस्तान के चर्चित शायर। अपनी ग़ज़ल ' मैं ख़याल हूँ किसी और का ' के लिए मशहूर।

सलीम कौसर

ग़ज़ल 57

नज़्म 19

अशआर 49

कैसे हंगामा-ए-फ़ुर्सत में मिले हैं तुझ से

हम भरे शहर की ख़ल्वत में मिले हैं तुझ से

तुम तो कहते थे कि सब क़ैदी रिहाई पा गए

फिर पस-ए-दीवार-ए-ज़िंदाँ रात-भर रोता है कौन

पुकारते हैं उन्हें साहिलों के सन्नाटे

जो लोग डूब गए कश्तियाँ बनाते हुए

बहुत दिनों में कहीं हिज्र-ए-माह-ओ-साल के बाद

रुका हुआ है ज़माना तिरे विसाल के बाद

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साए गली में जागते रहते हैं रात भर

तन्हाइयों की ओट से झाँका कर मुझे

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पुस्तकें 3

 

चित्र शायरी 6

 

वीडियो 18

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

सलीम कौसर

सलीम कौसर

सलीम कौसर

सलीम कौसर

सलीम कौसर

सलीम कौसर

सलीम कौसर

सलीम कौसर

Reading nazm "Taaza Khabar"

सलीम कौसर

Saleem Kausar at amushaira in 2003

सलीम कौसर

कहीं तुम अपनी क़िस्मत का लिखा तब्दील कर लेते

सलीम कौसर

कुछ भी था सच के तरफ़-दार हुआ करते थे

सलीम कौसर

तुझ से बढ़ कर कोई प्यारा भी नहीं हो सकता

सलीम कौसर

दस्त-ए-दुआ को कासा-ए-साइल समझते हो

सलीम कौसर

मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है

सलीम कौसर

वो जो आए थे बहुत मंसब-ओ-जागीर के साथ

सलीम कौसर

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