शाहिद कबीर के शेर
आप के दम से तो दुनिया का भरम है क़ाएम
आप जब हैं तो ज़माने की ज़रूरत क्या है
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ग़म का ख़ज़ाना तेरा भी है मेरा भी
ये नज़राना तेरा भी है मेरा भी
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बे-सबब बात बढ़ाने की ज़रूरत क्या है
हम ख़फ़ा कब थे मनाने की ज़रूरत क्या है
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कुछ तो हो रात की सरहद में उतरने की सज़ा
गर्म सूरज को समुंदर में डुबोया जाए
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इस सोच में ज़िंदगी बिता दी
जागा हुआ हूँ कि सो रहा हूँ
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काँटों को पिला के ख़ून अपना
राहों में गुलाब बो रहा हूँ
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गिरने दो तुम मुझे मिरा साग़र संभाल लो
इतना तो मेरे यार करो मैं नशे में हूँ
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वो भी धरती पे उतारी हुई मख़्लूक़ ही है
जिस का काटा हुआ इंसान न पानी माँगे
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शहर में गलियों गलियों जिस का चर्चा है
वो अफ़्साना तेरा भी है मेरा भी
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तबाह कर गई पक्के मकान की ख़्वाहिश
मैं अपने गाँव के कच्चे मकान से भी गया
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इतनी जल्दी तो बदलते नहीं होंगे चेहरे
गर्द-आलूद है आईने को धोया जाए
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मय-ख़ाने की बात न कर वाइज़ मुझ से
आना जाना तेरा भी है मेरा भी
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ठुकराओ अब कि प्यार करो मैं नशे में हूँ
जो चाहो मेरे यार करो मैं नशे में हूँ
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पाया नहीं वो जो खो रहा हूँ
तक़दीर को अपनी रो रहा हूँ
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कौन है अपना कौन पराया क्या सोचें
छोड़ ज़माना तेरा भी है मेरा भी
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तेरा कूचा तिरा दर तेरी गली काफ़ी है
बे-ठिकानों को ठिकाने की ज़रूरत क्या है
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ज़िंदगी इक आँसुओं का जाम था
पी गए कुछ और कुछ छलका गए
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