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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
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शमीम फ़ारूक़ी

1943 | पटना, भारत

शमीम फ़ारूक़ी के शेर

हसीन रुत है मगर कौन घर से निकलेगा

हर इक बदन में समाया हुआ है डर अब के

दूर तक फैला हुआ है एक अन-जाना सा ख़ौफ़

इस से पहले ये समुंदर इस क़दर बरहम था

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