शमीम फ़ारूक़ी के शेर
हसीन रुत है मगर कौन घर से निकलेगा
हर इक बदन में समाया हुआ है डर अब के
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दूर तक फैला हुआ है एक अन-जाना सा ख़ौफ़
इस से पहले ये समुंदर इस क़दर बरहम न था
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