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शमोएल अहमद की कहानियाँ
सिंघार-दान
इस अफ़साने में फ़सादात के बाद की इन्सानी सूरत-ए-हाल को मौज़ूअ् बनाया है। सिंघार-दान जो नसीम जान (तवाइफ़ का मौरूसी सिंघार-दान था, के ज़रीए बृजमोहन के ख़ानदान की सोच और तर्ज़-ए-फ़िक्र को तिलिस्माती तौर पर तबदील होते दिखाया गया है। बृजमोहन, नसीम जान का क़ीमती सिंघार-दान उससे छीन कर अपने घर ले आता है जिसे वो ख़ुद, उसकी बीवी और तीनों बेटियाँ इस्तिमाल करने लगती हैं लेकिन उसके इस्तिमाल के बाद घर के तमाम लोगों का तर्ज़-ए-एहसास यकायक तबदील होने लगता है और एक तवाइफ़ की ख़सलतें उनमें पनपने लगती हैं। यहाँ किरदारों की क़ल्ब-ए-माहियत को जिस तिलिस्माती पैराए में पेश किया गया है वो मुआशरे के तश्कीली अनासिर के मुतअल्लिक़ कई हवालों से सोचने पर मजबूर करता है।
ऊँट
अफ़साना ऊँट समाज के उन नाम-निहाद मज़हब के ठेकेदारों की नफ़सियात को बुनियाद बना कर लिखा गया है जो मिंबर पर बैठ कर अवाम को तो दीन-ए-इस्लाम और सही राह पर चलने की तरग़ीब देते हैं लेकिन ख़ुद कोई ग़लत काम करने से गुरेज़ नहीं करते। दर-अस्ल इस वाज़-ओ-नसीहत के पीछे उनका मक़सद अपनी हैसियत को, लोगों के सामने बर-क़रार रखना होता है। कहानी में मौलाना और सकीना के जिन्सी ताल्लुक़ात को बयान किया गया है और दोनों के दरमियान होने वाली गुफ़्तगू से मौलाना की मकरूह सोच को वाज़ेह किया है।
सराब
बदरुद्दीन जीलानी लेडी ‘आतिफ़ा हुसैन की मय्यत से लौटे तो उदास थे। अचानक एहसास हुआ कि मौत बर-हक़ है। उनके हम-‘अस्र एक-एक कर के गुज़र रहे थे, पहले जस्टिस इमाम अस्र का इंतिक़ाल हुआ। फिर अहमद ‘अली का और अब लेडी ‘आतिफ़ा हुसैन भी दुनिया-ए-फ़ानी से कूच कर गई
मिनरल वाटर
मिनरल वाटर अजनबी लोगों के दरमियान ताल्लुक़ की ऐसी नौईयत को पेश करता है। जिसमें जज़्बात-ओ-एहसासात का कोई दख़ल नहीं है बल्कि आला तबक़े से ताल्लुक़ रखने वालों के लिए ज़माने की तबदीली ने अपने तहज़ीबी रवय्यों की अहमीयत को पाश-पाश कर दिया है। कहानी में एक डिसपैच क्लर्क को पहली मर्तबा ए. सी. डिब्बे में सफ़र करने का तजुर्बा होता है, जिसमें उसके सामने वाली बर्थ पर बुर्जुआ तबक़े की एक ख़ातून भी सफ़र कर रही होती है। वो रात के किसी पहर अपने जिन्सी जज़्बे के सबब क्लर्क से ताल्लुक़ क़ायम कर लेती है। और सुबह, ज़िंदगी फिर अपने मामूल पर आ जाती है।
बगूले
बगोले लतीका रानी नामी एक ऐसी औरत की कहानी है जो अपनी जिन्सी ख़ाहिशात को दौलत के तराज़ू में तौलती है और साथ ही अपनी अना की तस्कीन के लिए मर्द पर हावी होने को तर्जीह देती है। इसी वजह से लतीका रानी एक मासूम लड़के को अपने जाल में फाँसने और जिन्सी जज़्बे की तस्कीन के लिए घर बुलाती है लेकिन लड़के की हरकतें उस की तवक़्क़ो के बर-अक्स होती हैं और अपनी अना को मजरूह होता हुआ देखकर वो उसे घर से निकाल देती है।
नमलूस का गुनाह
नमलूस का गुनाह में किरदारों को इल्म-ए-नुजूम, astronomy और इल्म-ए-फ़लक्कियात astrology की ख़ुसुसियात और सिफ़ात की बुनियाद पर तश्कील दिया गया है और सय्यारों और सितारों की गर्दिश की बुनियाद पर होने वाली तबदीलियों को किरदारों की शख़्सियत से जोड़ कर दिखाया गया है। कहानी में नमलूस ने, ज़ोहल होने यानी नेकी की ख़ासीय्यत की बिना पर अपने बाप हुक्मुल्लाह को मुआशरे में मरदूद क़रार दे दिया है, जो अपने अंदर राहो यानी बदी की ख़ुसूसियात रखता है और इसी वजह से नमलूस की पाक-दामन बीवी हलीमा के साथ बदकारी करता है।
काया कल्प
शहज़ादा आज़ाद बख़्त ने उस दिन मक्खी की सूरत में सुबह की... और वो ज़ुल्म की सुबह थी कि जो ज़ाहिर था छुप गया, और जो छुपा हुआ था वो ज़ाहिर हो गया। तो वो ऐसी सुबह थी कि जिसके पास जो था वो छिन गया और जो जैसा था वैसा निकल आया और शहज़ादा आज़ाद बख़्त मक्खी बन
आँगन का पेड़
‘‘आँगन का पेड़’’ अपनी जगह और अपनी जड़ों से मुहब्बत की कहानी है। जिसमें रह कर इन्सान अपनी ज़िंदगी के कई दौर से गुज़रता है। और वहाँ की हर चीज़ से उसे क़ल्बी लगाव हो जाता है। अफ़साने के मर्कज़ी किरदार को आँगन में लगे पेड़ से बचपन से मुहब्बत थी। लेकिन उसके बीवी-बच्चों को उससे लगाव नहीं था और बलवे के दिन यही ग़ैर-जानदार पेड़ आतंकियों से उसकी जान बचाने में मददगार साबित होता है।
ज़िहार
ज़िहार, शौहर-बीवी के ताल्लुक़ात में ज़िहार के मस्अले को पेश करता है। जिसमें शौहर अगर अपनी बीवी से कह दे कि ''तो मेरे ऊपर ऐसी हुई जैसे मेरी माँ की पीठ'' तो बीवी के साथ जिन्सी ताल्लुक़ क़ायम करना उस पर हराम हो जाता है। कहानी में इस पहलू को बुनियाद बनाते हुए किरदार को सच्चा मज़हबी इन्सान बनते हुए दिखाया गया, जो इस गुनाह का कफ़्फ़ारा अदा करते-करते ख़ुदा से हक़ीक़ी मुहब्बत को गले लगा लेता है।
बागमती जब हँसती है
‘‘बागमती जब हँसती है’’ में सियासत-दानों के मकरूह चेहरे को पेश किया गया है जो झूट, फ़रेब, धोका-धड़ी से अवाम का माल लूटते और अगर उनमें से कोई आवाज़ उठाना चाहे तो उसका ज़ेहनी इस्तिहसाल करके, सयासी दाँव-पेच से उसका मुँह बंद करना ब-ख़ूबी जानते हैं। कहानी में कामता प्रशाद सियासत-दानों के इसी चेहरे की नुमाइंदगी करता है जो बाढ़-पीड़ित हरिया के आवाज़ को चालाकी से दबा देते हैं।
बर्फ़ में आग
सुलैमान को अपनी बीवी किसी जुज़दान में लिपटे हुए मज़हबी सहीफ़े की तरह लगती थी जिसे हाथ लगाते वक़्त एहतियात की ज़रूरत होती है। उसकी शादी को दस साल हो गए थे लेकिन वो अब भी सुलैमान से बहुत खुली नहीं थी। सुलैमान उसको पास बुलाता तो पहले इधर-उधर झाँक कर इत्मीनान
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