शेर सिंह नाज़ देहलवी के शेर
चूम कर आया है ये दस्त-ए-हिनाई आप का
क्यूँ न रक्खूँ मैं कलेजे से लगा कर तीर को
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निगह-ए-लुत्फ़ में है उक़्दा-कुशाई मुज़्मर
काम बिगड़े हुए बंदों के सँवर जाते हैं
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बातों में ढूँडते हैं वो पहलू मलाल का
मतलब ये है कि ज़िक्र न आए विसाल का
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