Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

CANCEL DOWNLOAD SHER
Syed Sibte Hasan's Photo'

Syed Sibte Hasan

1912 - 1986 | Pakistan

Quotes of Syed Sibte Hasan

99
Favorite

SORT BY

ज़बानें मुर्दा हो जाती हैं, लेकिन उनके अल्फ़ाज़ और मुहावरे, अलामात और इस्तिआ'रात नई ज़बानों में दाख़िल हो कर उनका जुज़ बन जाते हैं।

सेहर इब्तिदाई इंसान की नफ़सियाती तदबीरों का दूसरा नाम है।

रियासत फ़क़त एक जुग़राफ़ियाई या सियासी हक़ीक़त होती है। चुनाँचे यह ज़रूरी नहीं है कि रियासत और क़ौम की सरहदें एक हो।

तहज़ीब जब तबक़ात में बट जाती है, तो ख़यालात की नौइयत भी तबक़ाती हो जाती है और जिस तबक़े का ग़लबा मुआ'शरे की माद्दी कुव्वतों पर होता है, उसी तबक़े का ग़लबा ज़हनी कुव्वतों पर भी होता है।

अगर कोई मुआ'शरा रूह-ए-अस्र की पुकार नहीं सुनता, बल्कि पुरानी डगर पर चलता रहता है, तो तहज़ीब का पौधा भी ठिठुर जाता है और फिर सूख जाता है।

मज़हब और सेहर में बुनियादी फ़र्क़ यह है कि मज़हब का मुहर्रिक क़ुदरत की इताअ'त और ख़ुश-नूदी का जज़्बा है। इसके बर-अक्स सेहर का मुहर्रिक तसख़ीर-ए-क़ुदरत का जज़्बा है।

रियासत के हुदूद-ए-अर्बा घटते-बढ़ते रहते हैं, मगर क़ौमों और क़ौमी तहज़ीबों के हुदूद बहुत मुश्किल से बदलते हैं।

रस्म-उल-ख़त की इस्लाह की बहस को मज़हबी रंग दें, क्योंकि रस्म-उल-ख़त का तअ'ल्लुक़ मज़हब से नहीं है।

तहरीर का रिवाज भी तमद्दुन ही का मज़हर है, क्योंकि वह मुआशरा जो फ़न-ए-तहरीर से ना-वाक़िफ़ हो मुहज़्ज़ब कहा जा सकता है, लेकिन मुतमद्दिन नहीं कहा जा सकता।

जो लोग रोमन रस्म-उल-ख़त पर यह ए'तिराज़ करते हैं कि रोमन अबजद के हुरूफ़ से हमारी तमाम आवाज़ें अदा नहीं होतीं, वो उस तारीख़ी हक़ीक़त को नज़र-अंदाज कर देते हैं कि अगर रोमन अबजद के हुरूफ़ हमारी तमाम आवाज़ों को अदा नहीं कर सकते, तो अरबी अबजद के हर्फ़ भी हमारी तमाम आवाज़ों को अदा करने से क़ासिर हैं।

Recitation

Speak Now